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________________ २८४ पडमचरिड किह वासरउ रउडु महारणु। स-तिसिर-घर-दूसण-सङ्घारणु ॥७॥ किह बोसरउ समरे पहरेवड । इन्दइ वि-र करवि धोवउ ॥८॥ किह वीसरा स-रोसु भिडेवर । लकेसर-सिर-कमल बुबंधउ ।।२।। पत्ता नघर वि उषयार जणदणहाँ किह रहुवइ मणे धीसरह । से अच्छा परिउवयार-मह णेह-वसंघउ किं करइ' ॥१॥ [६] पापणेवि इस वयण चवन्तु । अपणु वि जाणेवि आमपण-मिस् ॥ ३॥ जयकारेंवि वासवु चार वेस। गय णिय-णिग-विलय मुर असेस २ नहि णार स-विमम विणि देव । पचलिय लक्षणही विणासु जेव ।।। 'वलु मुयड सुणेषि सणेहवन्तु । पेक्षहुँ सो काई करई अणस्तु ॥४॥ किह रूआइ पजम्पाइ काई बयणु। आरूसइ कहाँ कहिं कुणइ गमणु ॥५॥ मुह सोएं केहट होइ नासु। केरिसड दुक्खु अन्ते इरासु' ।। एउ वयणु पसम्पधि रयणचलु। भण्णेकु वि णामें अभियचूलु ॥ विणि वि फय-णिच्छय गय तुरन्त । णिविसेण्य अज जमा-गयरि पत्त ॥6॥ घता मायामउ घर पुन हों भयण देवहि कलुणु मर गएउ । किंउ जुवह-भिवह-धाहा-गहिरु हा हा राहवचन्दु मुड' ॥९॥ जं हलहर-मरण-सर्दु सुणित। 'हा काई जाउ फुड राहवहीं'। सं भगा विसपणु सुमित्ति-सुउ ॥१॥ लहु श्रद चवन्तहाँ एव सहौं ।।२।।
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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