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________________ ससासीमो संधि ३ उत्पन्न होता है, परन्तु वहाँ भी वह धर्मसे उदासीन रहता है, मिध्यातपसे वह हीनकोटिका देव बनता है। पुष्पमाला मूछित होनेपर वहाँसे आकर मनुष्ययोनिमें जन्म लेता है। जो वैभव सम्पन्न देवताओं के लिए भी असम्भव है, ऐसा मनुष्यत्व पा लेनेपर भी शान-प्राप्नि असम्भव है। धीरे-धीरे वह धर्मका आचरण करता है, फिर वह दूसरी दूसरी बातोंमें कैसे लग सकता है। फिर वह मनुष्य रूपमें जन्म लेता है, और तम देवताके रूपमें । देवतासे फिर मनुष्यत्वमें । मैं जिनशासनमें किस प्रकार बोध प्राप्त करूँगा। कब मैं आठ दुष्ट कोका नाश करूँगा, और अविचल सिद्धालय प्राप्त करूंगा। तब एक देवताने कहा, "स्वर्गमें रहते हुए हमारी यह स्थिति है, परन्तु मनुष्यत्व पाकर सभी मोहमें पड़ जाते हैं।वे क्रोध, मान, माया और लोभमें फंस जाते हैं। यदि तुम्हें इस बातका विश्वास नहीं होता, तो क्या रामचन्द्रको नहीं देखते। ब्रह्मस्वर्गसे आकर मनुष्य के भोगोंमें पड़कर अपने आपको भूल गये । तब इन्द्रने हँसकर कहा. "जीव समूहको रोकनेवाले अशेष समस्त बन्धनोंमें प्रेमका बन्धन ही सबसे अधिक मजबूत होता है।" ॥१-१३॥ [५] सोनेके समान देदीप्यमान शरीरवाला लक्ष्मण रामके ऊपर इतना प्रेम रखता है कि एक भी क्षण ससके वियोगको सहन नहीं कर सकता। उपकारी प्राणोंसे भी अधिक वह उसे चाहता है । मैं इतना भर जानता हूँ कि रामकी मृत्युके नाम भरसे लक्ष्मण निश्चित रूपसे जीवित नहीं रहेगा 1 अब राम ही नहीं रहे, तो भाई क्या करेगा? वह विविध उपकार कैसे भूल सकता है, जो याद करते ही सुन्दर प्रतीत होते हैं. अयोध्याका छोड़ना
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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