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________________ २८२ समर्धारण मिच्छा-तवेंग जाउ होणामह। मुज्मइ चवि होइवि पडिधड रु॥ मह-रिनियही वि सरही सु-वलम्हा होइ णरसे वोहि अड्-दुल्लाह ।।। दुक्खु दुक्ख सो धम्महाँ लग्गह। अगणाजिउ पुणु किर काहि खगह ।।५।। अह देवो वि होधि परिवउ गरु । णरु वि होचि पुणु परिवउ सुरवरु ।। अहाँ देवहीं कल्यहँ मणुभतणें। वोहि लहेसहुँ जिष्णवर-सासणे ॥७॥ भट्ट-दु-कम्मारि हुणेसहुँ। अविचलु सिद्धाकउ पावेस?' । ए सुरेण युक्त तो सुरवइ । 'सगों वसन्तहँ श्रम्ह इय मह ॥९॥ मणुअत्तणे पुणु सम्ब हुँ मुग्नइ। कोह-लोह-मय-माणे हिं रूकाह ॥१०॥ महवाइ जहण विमणे परिमयहि । तो कि एडमणाहुण णियहि ।।1।। चचि घम्ह-मामही सुर-कोपड़ी। किह आससउ मणुम-विहोयहाँ' ।।२ घत्ता बिहसेवि चुन सकन्दणेण 'जीव-निहाय-गिरुम्धगहूँ । संसार सणेह-णिवन्धु दिड मज असेसह वन्धणहूँ ॥१३॥ [५] कशोहरु कसणुज्जा -लेहउ। रामोवरि-परिषदिव्य-गेहउ ||१| एपिणिविसु विनोंउ गइच्छा। उवगरें? पाणे िवि वह ॥२॥ पत्तिउ बाणमि हउँ जहाँ वेवहाँ। मरणहाँ गामेण जि वलएबहीं ॥३॥ गघि जीवइ गिरुनु दामोयरु। रामु मुभउ ते केम सहोयर ।।४।। किह वीसरठ विबिह-उवयारा। जे चिम्सविष-मणोरह-गरा ॥५॥ कह दीसरत भजन मुएवउ। समर सयलें वण-या ममेवर ॥६॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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