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२८.
पड़मचरित
विविहाहरण-फुरन्त-सरीरख । गिरिव धीह जलहि व गम्मीरउ | मह-रिदिएँ सत्तिएँ सम्पुण्णड। उसम-वल स्वेण पसपणउ ॥५॥ लोयबाल-पमुहह सुह-पवरहे ।। बोललइ समड असेसह अमरहूँ ।।५।। 'जासु पसारी पैड इन्दन्तायु। लकमद् देवसणु सिद्धतणु ॥७॥ जै संसार-चोर-रिषु एक। विणिहउ णाण-समुज्जल-प ।।८।। को भव-सायर-दुहई णिवार। भविय-लोड हलाएँ जि तारह ॥९॥
घत्ता उपरणही जसु मन्दर-सिहरें तियपेन्देंहि अहिसेड किंज। संपालाई सरुवामा सहा -स-
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जो सर सयर पिहिमि मुएप्पिणु । थिङ' भुवण-तय-सिहर घोप्पिणु।।३॥ जासु णामु सिषु सम्भु जिणेसह । देव-देषु महएषु महेसरु ॥२॥ जिणु जिणिग्दु कालञ्जय सङ्क। थाणु हिरपणगम्भु तिल्थकरु ॥३॥ बिहु सयम्भु सद्धम्म सयम्पहु। मयत अरुड भरहन्तु जयप्पहु ॥४॥ सूरि जाण-लोयणु तिहुयण-गुरु। केवलि रु? मिण्हु हरु जग-गुरु।।५।। मुहम मोभवु णिरवेवस्तु परम्परु । परमप्पा परमाणु परमपरु । ६॥ अ-गुरु अ-लहुड गिरणु णिकलु । जग-माल हिरवय सु-णिम्मल ।।३।।
घत्ता
इय गामें हिं सुर-गर-बिसहर हि जो संधुवा भुवण-य । तहाँ आगुदिणु रिसह-भवाराही मत्ति लगगहों पय-अवलं ।।८।।
[४] जीव अणाह-जिहणु मत्र-सायरें। काम-वसेण भमस्तु दुहायरें || केम विमणुय-जम्में उप्पल। धम्महों पपवर सहि मि मोहिजहाशा