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[८७. सत्तासीमा संधि ]
बहु-दिवसें हि ते लक्षण-सुअ वि दुबरु दूसहु तवु कपि । जिह हणुड तेम धुय-का-रण थिय सिव-मास पहले न
मकान।
[ ] तो इय वत्त मुणे वि रिउ-मई। विहस वि वोलिजइ बलहरें ॥३॥ 'सहवि एय वर-भोय मनोहर । हयपर गयचर रहवर परवर ॥२॥ बहु-सीमन्तिाणीउ सुहि-सयण । घण-कलहोय-धण्ण-मणि-श्यण ।।३।। पवि माणन्ति कमल-सगिणह-सुह ।' णारायण-पवणजय-तणुशह ॥४।। महु ण मुणन्तहाँ मघ-भय-लइया । पंखु केव सबळ वि पध्वया ॥५॥ मंछुडु ने बाएँ उद्धा । अहवद कहि मि पिसाए लद्धा ।।६।। जिम वामोहिय जिम उम्माहिय । कुसलु प अस्थि वेज्जे ण वि वाइय . से कम विहोय परिसेसेंवि गय तवेण अप्पाणउ भूसे चि' ॥८11
घत्ता धवकाही सिघ-सुह-मायणही जिणवर-वंस-समुभवहीं। राहवहीं वि जहिं जर-मह हवा तहि भण्णहाँ गघि होइ कहाँ ॥९॥
[२] अण्णहि दिण सुस्वरह परिहा। सहसणवणुणिय-सहणे णिविट्ठल ।। णं सुरगिरि सेस-इरि-सहायड। दिणयर-कोरि-तेय-सच्छाबड ॥२॥ वर-सीहासण-सिहरारुहियउ। पव-तिय-अच्छर-कोलिहिं सहियउ॥