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________________ ¡ छायासीमी संधि २७.७ में तत्पर, हे आशालीविद्याका पतन करनेवाले, हे वज्रायुध के वथको करनेवाले, हे लंकासुन्दरीसे पाणिग्रहण करनेवाले, हे देवताओंके नन्दनवनको उजाड़नेवाले, हा ! अक्षय कुमार और सबलको चूर चूर करनेवाले, हे मेघवाहनको युद्धसे ढकेल देनेवाले. हे विद्या और पूँछसे प्रहार करनेवाले, हे नागपाशको छिन्न-भिनाले मोनेवाले हे लंका कुलोंको नष्ट करनेवाले, हे बखोदरको कुचलनेवाले, हे लक्ष्मण और विशल्याका मिलाप करानेवाले, और रात्रणको सौ-सौ बार सतानेवाले, हे पुत्र, तुमने हम दोनोंसे भी नहीं कहा, तुमने अकेले ही दीक्षा कैसे ग्रहण कर ली ।" यह कहकर, पुत्रशोकसे व्याकुल उन दोनोंने भी जिनेन्द्र मन्दिर में जाकर starr प्रण कर ली। इस प्रकार विस्मयजनक कामदेव के अवतार पवनपुत्रने अत्यन्त कठिन तप तपा और बहुत दिनोंके उपरान्त केवलज्ञान प्राप्त कर वहाँ पहुँचा, जहाँ स्वयं स्वयम्भू देव थे ।।१-१२ ।। यशःशेष कविराजका यश त्रिभुवनमें फैला हुआ है। त्रिभुवन स्वयम्भूने पद्मचरित शेष भागको समाप्त क्रिया । स्वयम्भूदेव से किसी प्रकार बचे हुए पद्म-चरित शेष भाग में त्रिभुवनस्वयम्भू द्वारा रचित 'मारुति निर्वाण प्राप्ति' प्रसंग पूरा हुआ | बन्दइके आश्रित त्रिभुवन स्वयम्भू द्वारा रचित रामचरित भुवन प्रसिद्ध शेष मागमें यह छियासीचाँ सर्ग समाप्त हुआ ।
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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