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पउमचरित
घत्ता एउ जागन्नु वि पेषानु किह अच्छमि छाइड मोहण-जालें । य गिरिवर सूरुगमणे कल्ले जि दिक्ष लेमि कि काले' ॥२॥
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सिम्तन्तही हियवएँ तासु एव । गय रयणि कमेण कु-बुद्धि जेव ॥१॥ उपसमिउ दिवायरू गहें विहाइ । पावअ-णिहाकड आइ गाई ॥२॥ भाउछेवि पिय महिला-णिहाउ । सन्ताणे ठवेनि णियनजाउ ॥२॥ पीसरवि विमाणहाँ अणिल-पुत्तु । गर-जाणु घरिज मणि-गण-णिउसु ॥४ गउ णस्वर-सहित जिणिन्द-भवणु । चारण-रिसि लक्विंउ धम्मस्यणु ॥५॥ परियषि जिण-वन्दण करवि । पुणु दु-विहु परिग्गहु परिहरेबि ॥६॥ पण्णासहि सप्त-सहि सहाउ। खयरह दिवग्यकिउ साणुराज ॥७॥ वन्धुमइहें पासें सु-पउमराय। दिक्खकिय पहु-मुग्गीय-आय 11८|| साणकुसुम तिह वरहीं धीय । तिह सिरिमालिणि णल-सुय विणीय ९ तिह लङ्कासुन्दरि गुणहँ रासि। जा परिणिय काउरिहि आसि ॥१० अवरउ वि मनोहर लिय : तार। गिवन्त अट्ट सहास जाव 11111
पत्ता इय एकेक पहाणियउ सिरिसइलही अइ-पाण-पियारिट । श्रण पुणु कि जागियड जाउ स्थु पन्चयउ णारित ॥१२॥
[९] वत्त सुर्णेवि रोषन मरु-अन्जग। 'हा हणुवन्त राम-मपा-जण ॥ हा हा उहय-बस-संषद्धष्ण । हा वरुणाहिय-सुय-सय-वनधण ॥२॥ हा महिन्द-माहिन्दि-परायण । हा हा आसाली-विणिवायण शा