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पजमचरित
तहिं काले हणुउ तणु-पह-जियाहु । सुरदुन्दुहि-से के स-सेण्णु य ।। जोबइ कसणुज्जलु जाव गयण। ससि-विरहिउ णिहीधउ व भवणु ॥६॥ सहि ताव णियारिलय मिरु गुरुक । णहयलही परन्ति समुमलुक ॥७॥ सन्बहाँ विजणही सजासु करम्ति । णं बिजुल-लेह परिष्फरन्ति ॥८॥ गह-तारा-रिक्रहिं पाह हस्ति । पलयाण-जालहें अणुहरन्ति ॥१|| सा थोवन्तर अ-मुणिय-पमाण । अस्थाकए णिवि विडीयमाण ॥१०॥
घत्ता
घिमिट णिय-मणे सुन्दरण भिद्धिगत्यु संसार-णिवासु । तं तिल-मिस्तु बि कि पि ण वि जासु ण दोसह भुषणे विणासु ।।१३।।
[७]
दिवसें हि मण-मूतहुँ पारिसाहुँ। एह जे अवस्थ भम्हारिसाईं ॥१॥ हिन्तहूँ गिरिचर-कन्दरे वि। मासर मसिघर-पञ्जरे वि ॥॥ छउ-दिसहि मवन्तहँ अम्बरे वि । लुमन्तहँ सायरे मन्दरे वि ॥३॥ आएँ हि भवहिण मुबह मितु । सो वरि पर-लोयहो दिपणु चिसु ॥३|| जोवणु वर-कुक्षर-कगण-चक्लु । जीविउ सणगाव-विन्दु-तस्लु ।।५।। सम्पय दप्पण-छाया-समाण | सिय मरू-हम-दीव-सिहाणुमाण ॥६।। सरयम्मय-छाहिन्स कछाउ पत्थु । सिण-जलिय-जलण-समु सयण-सस्थु । सुस-मुट्रि व णिरु णीसार देहु । जल-मेह व विट्ट-पण्टा जहु ।।८।।