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छायासीमी संधि
नाश करनेवाले, आपकी जय हो, दुर्भेय सुन्दर शासनको समग्र रूपसे प्रकाशित करनेवाले आपकी जय हो। अच्छे खासे मजबूत पुष्ट आठ कर्म के बन्धनको तोड़नेवाले आपकी जय हो, क्रोध, लोभ, अज्ञान, मान रूपी वृक्षोंकी कतारको मोड़ देनेवाले आपकी जय हो, भव्य जीवोंको संसार समुद्र तुरन्त तारनेवाले आपकी जय हो, तीन शल्यों और जन्म, जरा और मृत्युको नष्ट करनेवाले आपकी जय हो, सब ओर से पवित्र, विमल केवल ज्ञानसे उज्ज्वल दिव्य लोचनोंवाले, आपकी जय हो । जन्मान्तरोंसे शून्य, और पापसमूहका नाश करनेवाले आपकी जय हो । त्रिलोककी लक्ष्मी व्रत और दयाको मार्न दिखानेवाले, अनुपम गुणांसे युक्त, आपकी जय हो, विषयोंसे हीन, आपकी जय हो, दशविध धर्मके अनुपालक आपकी जय हो; तुम सर्वज्ञ हो, सबसे निरपेक्ष हो, निरंजन, निष्फल और महान हो ! तुम अवयवोंसे हीन अत्यन्त सूक्ष्म परम पदमें स्थित, अत्यन्त हलके और सर्वोत्कृष्ट हो। तुम निर्लेप अगुरु परमाणु तुल्य, अक्षय और वीतराग हो । तुम्ही गीत हो, तुम्हीं मति हो, तुम्ही पिता हो, तुम्हीं बहन और माँ हो, भाई, सज्जन और सहायक भी तुम्हीं हो। इस प्रकार तरह-तरह के स्तोत्रोंसे जिनेन्द्र भगवान् की स्तुति, पूजा और अर्चा कर, और सुमेरु पर्वत की चोटियोंको परिक्रमा कर हनुमान् आकाशमार्गसे लौट आया || १ - ९॥
[१६] सचमुच हनुमान् नेत्रोंके लिए आनन्ददायक था, और उसका मन जिनेन्द्र भगवान्की वन्दनाके अनुरागसे भरा हुआ था। जब वह क्रीडापूर्वक भरत क्षेत्रको लौट रहा था तो दिन ढल गया और सूरज डूब गया । लाल-लाल संध्या ऐसी आयो जैसे वेश्या हो या रक्तसे रंजित राक्षसी हो, अन्धकार अत्यधिक