SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 14 परमचरिर छाइनई गयणु चान्तपहिं। भखलिय-सर-सहि-भिवान्तपहिं ॥४॥ याएवज पत्तु पहाणेग। रहु खचिउ अदिसिह णम्दोण ।।५।। दिस करिहुँ असेसहुं गलिउ गाउ । काजि मार ॥i मिमन्ति बलर जस्ले जलयरा पि । णहें पट्ट देव थले यजयरा वि ॥७॥ सो ण वि मयत्रह सो गा वि तुरङ्ग । सो ण षि रहबरु तपण वि रहा ॥८॥ सो | वि घाउ तण चि आयवत्तु ! जहिं राम-सरह सउ सउ ण पतु ॥९॥ घता गप सत्त दिवह जुजान्ताएं तो पछेउ महाहवहीं । लहु लक्षणु अन्तरे देवि रतु विजउ गाई थिउ राहवहीं ॥१०॥ [१३] ॥दुवई।। 'वल मई किकरण किं कीरह जइ तुहुँ धरहि धणुहरं । मिसियर-कुल-कियन्सु ह भस्कृमि रावण या रहवरं ॥१॥ दुग्मुह दुचरिय दुराय-राय। तउ राहय-केरा कुछ पाय ।।२॥ बलु उरें कर चुकहि म जियन्तु । बहु-काल पावड घउ कियन्तु' ॥३॥ तो कोष-जलण-मालोलि-जलिउ । 'हणु हणु' भणन्तु लक्खणहाँवलिउ।।। से वासुएव-पश्विासुएव । कुल-धवल धणुन्दर सावळेच ।।पा। गय-गान-सन्दण कसण-देह । जग्णय गाई पहें पलय-मेह ॥१॥ णं सोह महीहर-मत्थयस्थ । गं विश्न-सजमा डअयाचलस्य ।।७।। णं अक्षण-महिहर विणिहू। गंगा-णिहेण थिय काल-दूम !!८!
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy