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पंचतरिम संधि
रूपी पवनसे वह चंचल था । उसने अपने बीसों हाथोंसे बोस हथियार एक साथ युद्ध में छोड़ दिये, परन्तु वे घूमते हुए भी रामके पास उसी प्रकार नहीं पहुँचे, जिस प्रकार याचक किसी कंजूसके पास नहीं पहुँच पाता ।। १-१८।।
[११] तब रावणने व्यामोह और तमोह नामके तीर छोड़े, परन्तु रामने उन्हें भी अपने पतंग तीरसे जीत लिया। इसपर रावणने वदण्ड फेंका, रामने उसके भी दो टुकड़े कर दिये । रावणने तब वृक्ष मारा, रामने उसे भी अपनी बहुमूल्य तलवार से काट दिया। तब रावणने एक विचित्र पर्वतसे आक्रमण किया, रामने उसे भी बलिके अन्नकी तरह सब दिशाओं में बखेर दिया । तब रावणने आग्नेय बाण छोड़ा, रामने वारुणीसे उसे शान्त कर दिया। रावण ने पन्नगतीर विसर्जित किया, परन्तु रामके गरुड बाणने उसे भी व्यर्थ कर दिया । रावणने तब गजमुख तीर छोड़ा, परन्तु रामके सिंहमुख तीरके सम्मुख वह भी नहीं ठहर सका। रावणने सागर बाण मारा, उसे भी रामने मन्दराचल तीरसे व्यर्थ कर दिया । इस प्रकार निशाचरराज जो भी तीर छोड़ता, राघवेन्द्र उसीको निरर्थक कर देते । इस प्रकार समूची युद्धभूमि और सेना राम और रावणके तीरोंसे उसी प्रकार संतप्त हो उठी जिस प्रकार खोटे मार्गपर जाती हुई पुत्रियोंसे दोनों कुल पीड़ित हो उठते हैं ॥१- १०॥ [१२] रावण और राम दोनों शुद्ध वंशके थे । वे क्रमशः वैश्रवण और दशरथके पुत्र थे। दोनोंने शंख बजवा दिये और अपने रथों में उत्तम सिंह जुतवा दिये। रामचन्द्र दोनों हाथोंसे उस पर प्रहार कर रहे थे, जब कि रावण अपने बीसों हाथोंसे | तब भी राघवके तीर गिने नहीं जा सकते थे। उनसे लंका
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