SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ पउमचरिउ धत्ता श्रीसह मि करें कि बीसाउहहूँ एक बार रण मुखाहूँ । परा किविला [११] दुबई। वर दसाणणेग वामोहु समोहु सरो विसजिलो । सो विवधुरेण रामेण पयंग-सरेण निजिओ ॥ १॥ रामणें विसज्जित कुलिस-दण्ड । सोंचि में क्रिउ सय खण्ड- बण्डु २ रामन समाउ पायवेण । सघि मग्गु मध्ये वायवेण ॥३॥ रामण विज्जिड गिरिं विचिसु । स विरामे वलि जिह दिसहि वित्तु अगर मुकु दस-कन्धरेण 1 उल्हाविड सो बि वारण- सरेण ||५|| रामणेन विसजिउ पयस्थु | सौंषि गारुषाहि किउ गिरत्थु ६ रामजन गयाणण-सर विमुक्त | ताह मिल वाण मइन्द बुक || ५ || रामण विसजिव सारथ । तं मन्दर-घाएं पिट शिशु ॥२॥ जं जं आमेल्लर णिसियरिन्दु | सं तं विशिवार राम चन्दु ॥ ९ ॥ ॥१८॥ रण रामण- राम सरे िवलहूँ दुष्पुतहि जिह पतन्त हि विहि हत्थे हि पहरइ रामचन्छु । अपवाणं वाण राहवहीं तो वि घत्ता समर-भूमि महावियहूँ । उह कुछ हूँ संताषिय हूँ ॥ १० ॥ [१२] || दुवई || विणि शिसुद्ध-वंस रयणासव- दसरह जेटुणा । विष्णि घिदिण्ण-स कर-कंसरि जोतिय-पवर- सन्दणा || १ बीस हि भुव दण्डहिँ णिसियरिन्दु ॥ २ जजश्यि लङ्क स्थणायशे वि ||३||
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy