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________________ छायासीमी संधि ३६५ तुम आकर मयूर जैसे मधुर बोल सुनाओ, दा, आज तो हम लोगों की माँ भी नहीं रहीं। यह बात जनकको भी सुना दो, और अपने छोटे भाई कनकके साथ आओ। उसके दुःखोंके बारेमें क्या पूछना, यदि अनेक मुख हों तभी उनका वर्णन किया जा सकता है। शेष सब बंधु-बांधवोंने मिलकर बिजलीसे भ्यस्त शरीर भामंडलका लोक कर्म किया, और जलदान दिया ॥ १-२ ॥ [१४] बहुत दिनोंके बाद हनुमान भी अपने पुत्र के साथ विमानमें बैठकर कर्णकुंडल नगरके लिए गया । बहुत-से विद्याधरों से वह घिरा हुआ था, अन्तःपुर भी उसके साथ था। वह तुरन्त वंदनाभक्ति करनेके लिए मेरु पर्वत पर इस प्रकार गया, मानो कुबेर ही यक्ष और यक्षिणियोंके साथ जा रहा हो । देश-देशान्तर एव विजयार्ध पर्वतकी दोनों श्रेणियोंको देखता - भालता हुआ वह चला जा रहा था । मार्ग में उसने कुलपर्वतकी शोभा जिनवर, वापिकाएँ, कल्पद्रम, लतागृह, गुहा कूट, क्षेत्र, कानन, दोनों कुरुभूमियाँ और उपवन ये सब बातें कभी वह अपनी प्रियपत्नीको बताता, और कभी एक क्षणमें हँसकर रमण करने लगता । प्रचण्ड वेगसे उसका शरीर हिलडुल रहा था। फिर भी मंदराचलकी सुन्दर चोटी पर वह पहुँच ही गया। हनुमान अपने महान विभानसे उत्तर पड़ा और पत्नी सहित तुरन्त प्रदक्षिणा की और तब निर्मल भक्ति से जिनमंदिर में भगवान की स्तुति प्रारम्भ की ॥१९॥ [१५] "हे जिनवरोंके इन्द्र, आपकी जय हो, धरणेन्द्र, नरेन्द्र और देवेन्द्र, आपकी बन्दना करते हैं, चन्द्र, कार्तिकेय, उत्तम व्यन्तर देव और दूसरे समूहोंसे अभिनन्दित, आपकी जय हो, ब्रह्मा और स्वयंभू मनका भंजन करनेवाले, और कामदेवका
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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