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पउमचरित
एनिय-कालहाँ सिहि महुर-वाय । हा मुय अम्हारिय अज्नु माय' ॥६॥ शिमुणाचिउ जणउ वि नुरिउ भाउ। लहु-मायरेण कणएं सहाड ॥७॥ तहों पुणु पुष्ट्रिजइ दुक्खु काई । सो वणिजह नहबहु-मुहाई ।।६।।
घत्ता
म(?मि)ले वि असेसहि वन्ध हिं सोयामणि-संचूरिय-कायहाँ । सहसा लोयाचार किउदिष्ण मलिलु मामाल-रायहरे ॥९॥
[११] तो बहु-दिवसें ईि मारुधिस-जाउ । स-विमाणु कपणकुण्डल-पुराड ॥१॥ परियरियउ वहु-खेयर-जणेण । अन्तेउर-साहिउ णणे ॥॥ गड चन्दण-हस्तिएँ सारेउ मेरु । णं जक्खिगि-जवर हि महुँ कुवेर ३ पंक्वन्तु देस-देसात
वरद-भर-साढहि पुरा ॥४॥ कुल-गिरि-सिर-सरवर-जिगराई । चाघिउ कम्पवुम-लयहराई ॥५॥ गृह-कूदइँ खेसई काणणाहूँ। विणि वि कुरु-भूमिउम्रषणाई॥ सव्या पिय-परिणिहिं दक्खयन्तु । विहसन्तु खणे लणे पुणु रमासु ।। || अरु-रह मुसिय-समत-गत्तु । मगहर-गिरि-मन्दर-सिहरु पसु ॥८॥
पत्ता पत्रर-विमाणलों भोयरे यि करेंवि पयाशिण नुरिय स-कम् । जिम्मक-मसिएँ जिण-मवणे थइ पारम्मिय पुणु हणुवन्ते ॥५॥
_[१५] 'जय जय जिणवरिम्द धरणिन्द-णरिन्द-सुरिन्द-बन्दिया जय जय बन्द-सन्द-वर-विन्तर-बहु-बिम्दाहिणन्दिया ।।३।। जय जय वाम-सम्भु-मग-भजण मयरदय-विणासा