SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ छायासीमो संधि २६३ लेता है ? इन मीठे शब्दों, तथा दूसरी और बातोंसे महा मानी उन्हें लोगोंने इस प्रकार शान्त किया, मानो वह गुरुमन्त्रोंसे नागरानों के गति मुखको कील दिया हो ॥१-६॥ ९] कन्याओं के साथ कुमार लवण और अंकुशको उन्होंने देखा। बहुत चारण भादोंका समूह उनकी स्तुति कर रहा था, चारों दिशाओंमें उनका यशोगान गूंज रहा था। गाये जाते हुए मंगलों, गम्भीर तूर्यों और काहलोंको सुनकर, और उनकी श्रीसम्पदाके विक्षोभको देखकर सब लोग चाहने लगे कि घरको बुलाया जाय । अब वे अपनी निन्दा उसी प्रकार करने लगे, जिस प्रकार इन्द्र को देखकर हीन रूपवाले अपने-आपको हीन समझने लगते हैं । वे कह रहे थे, "हम लोगोंके पिता त्रिलोकके अधिपति हैं, निश्चय ही हम सौन्दर्य रूप और यौवन मेंकिसीसे कम नहीं, हम भी गुणवान् और साधन-सम्पन्न हैं, हमारे भी बहुत-से माई हैं, जो प्रतापी और अतुल भुजबलसे युक्त हैं। फिर भी हम नहीं जानते कि हममें ऐसा कौन सा गुण कम है कि जिससे, एक भी लड़कीने गले में वरमाला नहीं डाली। अथवा व्यर्थ दुःख करनेसे क्या लाभ १ संसारमें जो कुछ मिलता है - वह पूर्वजन्मके पुण्यके प्रतापसे । जीवकी मनो वांछित बात दुर्जनोंके कारण क्या नष्ट हो जाती है ।।१-१।। [१०] इसलिए अच्छा यही है कि हम तुरन्त जाकर तपस्या अंगीकार कर लें, जिससे हम सिद्धिवधूका हाथ पकड़ सकेंगे। अपने मनमें यह सब सोचकर और अभय होकर, वे मुड़कर लक्ष्मणके पास गये। उन्होंने प्रणामपूर्वक निवेदन किया, "हे तात, सुनिए, विषय सुख बहुत भोग लिये । हमने इस भयंकर घोर संसार-समुद्र में काफी घूम-फिरकर धर्मसे विमुख होनेके कारण बड़ी कठिनाईसे मनुष्य जन्म प्राप्त किया है। यह संसार
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy