________________
पउमचरित
घाता इय पिय-वयणे हि भवरे हि मि ते उवसामिय माण-समुण्णय । पण वर-गुरु-मन्तकखारहि किय गइ-मुख-णिवद्ध षहु पण्णय ॥१॥
[५] पुणते भादलावि तापनार। ग. काहिं लहस-कमार || बहु-बन्दिण बन्दै हि थुम्वमाण। घ3-दिस जण-पोमा जमाण ॥२॥ गिसुवि गिजन्तई मङ्गलाई । तर गहिराइ स-काहलाई ॥३॥ पेक्खेप्पिणु सिय-सम्पय-विहोउ । चर-भाणवडिच्छउ सरलु छोड ॥४॥ अप्पाणउ परिणिन्दन्ति के₹। हरि दसणे सुर सव-होण जेधं 114॥ 'अम्हाँ तिखण्ड-महिव इह पुत्त । लायपण-रूव-जोन्यण-णिरुत्त ॥६॥ चहु-गुण बहु-साहण बहु-सहाय । सु-पयाव अतुल-भुय-बल-सहाय ॥ ण वि जाण होण गुणेण केण। एकही विण घत्तिय माक जेण ॥८॥
अहवद काइँ विसूरिऍण जीव हो मणण समिच्छिउ
पत्ता लगभइ सयलु वि चिरु कय-पुणे । कि संपण्ड किऍहिँ पइसा 141)
[१०] मरि तुरिउ गम्पि तब-चरणु लेहुँ। में सिद्धि-बहुभ-करयल घरे?' ॥॥ ऐंउ चिन्तेवि अपहस्थिय-मयासु । पुणु गय पलेपि लक्षणही पासु ॥२ विपणविड वेपिणु "णिसुणि ताय । पजत्तर विसय-सुकेहि गय ||३|| अम्हाँ संसार महासमरें। पुट्ट-काम-जलयर-रत ॥७॥