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________________ लापासीमो संधि २६. [५] इसी बीच में दुनिवार शत्रुओंके महारक, लक्ष्मणके पुत्र अपने मनमें विरुद्ध हो उठे। प्रलयकालके रूपके समान तीन सौ पचास विक्रमसे भरे हुए देवताओं के साथ उन्हें बच्चा समझकर वे तथा दूसरे लोग वहाँ पहुँचे। उन दोनोंने मी अपनी सेना सजा ली, वह गर्जन मेघ कुलके समान आकाश में ही सुनाई दे रहा था । नागकुलके समान अन्यन्न भयंकर, घोर और गम्भीर नगाड़े बजाये जा रहे थे । स मरके लिए कमर कसे हुए योद्धा पावस मेघों के समान धनुष धारण किये हुए थे। रथ विमान अश्व और गजोंकी उस सेनामें रेट-पेल मची हुई थी। विविध चिह्नों और पताकाओंसे दिशाएँ ढके चुकी थीं। भीषण आयुध जब तक रामके पुत्रों के सम्मुख मुड़े या न मुड़े, तर तक लक्ष्मीकामाचीसे शE मा पुमारोंजे अपने भाइयोंके साथ उसे ऐसे पकड़ लिया, मानो दिग्नागोने त्रिलोकचक्र पकड़ लिया हो ||..॥ [८] तब लोगोंने कहा, अरे अरे भाइयो, तुम क्रोध मत करो, और इस प्रकार रघुकुल में विरोध मत बढ़ाओ। जन्मदिनसे ही राम और लक्ष्मण में स्नेहकी जो अदद धारा बह रही है, उसे भंग मत करो | दूसरोंकी इन कन्याओंके लिए आपसमें महायुद्ध करना व्यर्थ है | इस युद्ध में गुण विनय स्वजन और क्षमाका विनाश होगा, तीनों लोक धिक्कारेंगे । इस प्रकार जो राजालहते हैं, वास्तबमें वे कुपुरुष हैं, और विज्ञान एवं कलासे अनधगत हैं। परन्तु आप सब समर्थ हैं, गुणवान हैं और अर्थ एवं शास्त्रको समझते हैं। और फिर थोड़ी सी रामसे लज्जा रखनी चाहिए, वहाँ जाकर किस प्रकार उन्हें अपना मुख दिखायेंगे। ठीक है कि मतवाले हाधीकी तूंडपर खूब भौरे भिन-भिना रहे हो, पर इसके लिए क्या वह अपनी सूंड चपा
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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