________________
२५६
परमचरित
स? तेहिं मिलेंवि कणरहासु । गय समुह सयम्बर-मालवासु ||३|| जहि गाद णिविड वह मञ्च वद्ध । पाावइ सकइ-कय कहन-बन्ध ॥१॥ जहि परपर पदिय-बहु-विचार । खणं गर्ले बन्धन्ति मुगन्ति हार ।।५।। खणे लेन्सि आणेयई भूसणाई। घउ दिसु जोयन्ति नियंसणाई ।।३।। जहि सुम्वइ वीणा-वेणु-मद्दुः । पगु-पह-मुख रुना णिणदु ।।। जहि मणहरु के वि गायन्ति गैड । अइ सु-सरु सुहावउ शिविह-मंड ।।८॥ सहित कुमार सयल वि पद्दष्ट। णाणा-मणिमय-म हि णिविट्ट ॥॥
घसा णिय-रूपोहामियामयण सोलह-शाहरणालरिया। माणुस-वेसे धरणि-यले ___ अमर कुमार पाएँ अवयरिया ॥१०॥
तो रूव-पसपण नुः धेपिण वि कण्णा णिरुवम साहनगड करिणि-वलगगड मणि-विमल-कयासहीं मियय-णि घासहों । णव-कमल दलस्टिज सरसह-सच्छिउ । स-विससे भलिउ गं दुह मल्लिर गुण-गण-पडिहश्चित वर-व-लच्छिउ थिय चउहु मि पामहिं मन-सहासहि मोहण-लय-मायर पकहि भारत ण सुकह-णिवदउ कहा रस सोहमग-विसेस ते धवपमें भइ-विसम-विसावउ विसहर-दावन ज रणे दुन्तिर मग्गण-पन्तित
गहिय-पाहणउ । जण-मण्य-विन्धमा । सुह-दिणे णग्मयड । णाई समागयर ॥॥ मयणे मल्लियउ। ण संचालथान || वर जोयन्तियउ ।
मोहन्तियउ || मणे पइसस्तियः । यं णासन्तियउ ॥५॥ णं मारन्तियउ । घिरहु करन्तियः ॥६॥