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________________ ૨પ छायासीमो संधि स्थानके राजा कंचनरथने कंचनरथके साथ बहुत दिनोंके बाद एक लेख भेजा है कि मेरी पत्नी जयद्रथ जगमें अत्यधिक प्रसिद्ध है। देवलक्ष्मी के समान सुन्दर और विशुद्ध कुलकी है। उसकी दो सुन्दर कन्याएँ. हैं जो लक्षणोंसे युक्त एवं अभिनव यौवनसे मण्डित हैं। पन में बड़ीमा जाम महाविनी दे और छोटीका नाम चन्द्रभागा है जो अत्यन्त सुन्दरी हैं। उनके स्वयंवरके निमिप्स समस्त घरतीके मनुष्य और विद्याधर इकडे हुए हैं। परन्तु तुम्हारे बिना वे उसी प्रकार शोभित नहीं होते जिस प्रकार देवता इन्द्र और प्रतीन्द्र के मिना ॥१-|| [३] यह जानकर राम और लक्ष्मणने हर्षपूर्वक कुमार लवण और अंकुशको वहाँ भेज दिया । लक्ष्मणके आठ पुत्र भी वहाँ गये। वे ऐसे लगते थे मानो आठों दिशाओंसे दिग्गज चल पड़े हो या आठ वसु हो या आठ नागराज । और भी साधनों एषं सेनाओं के साथ साढ़े तीन सौ पुत्रों को वहाँ भेज दिया। और भी दूसरे कुमार जिनके शरीर गठे हुए थे और एक दूसरेके प्रति बढ़-चढ़कर प्रेम दिखाना चाहते थे, विद्याधरोंके समूहसे घिरे हुए वे लोग विमानों द्वारा आकाशमार्गसे चल पड़े। मानो युगका बिनाश होनेपर आग चन्द्र सूर्य शनि बुध शुक राहु और मंगल हों। चारों दिशाओंमें समस्त घरतीको देखते हुए वे एक क्षण में कंपनस्थान पहुँच गये। छत्र चिह और पताकाओंका समूह नगरमें कुमारोंके समूहसे ऐसा लगता था, मानो लवण और अंकुशके विवाह के लिए विशाल विवाह मण्डप बनाया गया हो ॥१-२॥ [४] इस प्रकार दशरथपुत्र रामके पुत्र लवण और अंकुशका आगमन नभमें देखकर विजयाध पर्वतपर निवास करनेवाले सभी विद्याधर प्रेमके साथ अपना मुख नीचा किये हुए आये।
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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