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पढमवरित
कच्चणथागहों कजणरहेण । पट्टबिउ लेहु कबण-रहेण ।।५।। 'मट्ठगि जनह जोगामिद । सुर मरिन मुबाणिय कुल-बिसुद्धा दुइ दुहियउ साहें वियश्खणाड । अहिणघ-जोन्वणउ स-ठसवणाउ 11|| मन्दाइणि-णाम तहि महन्त । लहु स्वम्दमाय पुणु रूपवन्त ॥८॥
घत्ता ताह सयम्बरकारपण मिलिय सयल महि-गोयर खेयर । तुम्हहि विशु मोहन्ति ण वि इन्द-पढिन्द-रहिय गं सुरवर ॥९॥
ऍट परिमाणेवि सहसति सेहि। सरहसे हि पाम-चोसहि ॥३॥ परिपेसिय भवस-कवण वे वि। इरि-गन्दण अट कुमार जे वि ॥२॥ गं पचलिय अट वि दिस-करिन्द । णे वसु न बट वि विसहरिन्द ॥१॥ अण्णेक तगय साहण-समाण । पट्टबियाहुटु-सब-रूपमाण ॥१॥ मवर वि कुमार दित-कविण-पेह । अधरोप्पर परिवरिय-सणेह ।।५।। स-धिमाण पयह गहाणेण । परिडिय-विजाहरभरणेण ॥५॥ र्ण जुग-सएँ हुअवहु पन्द-सूर । सणि-कणय-केज-गुरु-राहु कूर ।।।। सोयन्त चउरिसु महि समस! संक्रमणथाणु खरोण पत्त ॥
घचा छत्त-चिन्ध-सिगिरि-णियरु दीसह पुरै कुमार-सधाएं । णं विवाह-मणवु बिउलु णिम्मिड लवणसह विहाएं ॥५॥
[ ] तो पहें पेवेवि भागमणु ताहूँ। दससन्दा-गन्दण-णन्दणा ॥१॥ वेयड्न-णिवासिय साणुराय। अहिमुह विजाहर सबक पाय ||२॥