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पंचासमो संधि
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है जिसे आदित्यनगरका संरक्षण दिया है। अंजनाके तात यह माहेन्द्र हैं। मनोवेगा और महादेवी उसकी सहायिका हैं और भी तीनों मासाएँ आर्मी, अपराजिता कैकेयी और सुप्रभा । यह है पुण्यधनकी बेटी विशल्या सुन्दरी जिसने युद्ध में शक्तिसे आहत लक्ष्मणके प्राण बचाये ॥। १ - ११ । ।
[११] इस प्रकार नागरिकाओं में वार्तालाप हो हो रहा था कि राम और लक्ष्मणने राजकुल में ऐसे प्रवेश किया मानो गंगा और यमुनाके प्रवाहोंने समुद्रमें प्रवेश किया हो, सूर्य और चन्द्र आकाशमें स्थित हों, गिरिगुहाओंमें जैसे सिंह हो, व्याकरणकी कथाके भीतर जैसे शब्दार्थ हो । शोकाकुल होकर राम अपने मन में सोच रहे थे कि देखो सीतादेवीने किस प्रकार तप ले लिया। मैं उसका पति हूँ, लक्ष्मण जैसा उसका देवर है, जनक जैसे पिता हैं, भामण्डल जैसा भाई हैं, लवण और अंकुश जैसे उसके दो यशस्वी बेटे हैं, दीर्घ आयुवाली अपराजिता जैसे उसकी सास है। यह वही धरती है, वही राज्य है, यही वह नगर है, यही घर है, यही वे अन्यान्य बन्धुजन हैं। क्या पूर्णिमा चन्द्रमा समान इन सुन्दर छत्रों को उसने सहसा ठुकरा दिया है। सीतादेवीने इस समय ऐसा साहस दिखाया है, जो बड़े-बड़े देवताओंके लिए असम्भव है। इसमें सन्देह नहीं कि उसका यश बहुत समय तक इस दुनिया में रहेगा । परन्तु इस समय प्रजानाशक लांछन लगानेवालोंकी मनोकामना पूरी हो । सीतादेवीके गुणसमूह से मनोविनोद करनेवाले लक्ष्मण भी यह सोचकर हैरानी में पड़ गये कि सीतादेवी इतनी उदाराशय निकलीं कि उन्होंने देवताओंकी भी विभूतिको ठुकरा दिया ॥१-२१||