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पउमचरित
ऍहु सो महिन्दु अक्षणहें साउ। मणवेय-महाएविएँ सहाज ॥१॥ भायड सहि तिणि विजणिउताउ | अबराहय-कहकय-सुप्पहाई 11१०॥
पुपण घणहाँ तणय सत्ति-हउ (?) जाएँ रण
पत्ता सा एह विसाला-सुन्दरि । परिरक्खिा लक्षण-केसरि ||
[१५] ।। हेला ।। णायरिया-यणासु भालाब एवं जावं ।
लक्षण-पडमणाह राउले पइष्टु तावं ॥५॥ सुरसरि-जउण-पवाह व सामरें। ससि-दिवसपर व अस्थ-धराहरें ॥२॥ कसरि म्ब गिरि-कुहरग्मन्तरें । सइत्थ व वापरण-कवन्तर ॥३॥ चिन्तइ पलु पिय-सोयम्मइयड । 'पेक्खु केव सोयएँ तवु लइयउ ।।४।। है। मत्तारु जणहणु देवरु । जणउ जणणु भामण्डलु भायरु ॥५॥ णन्दण वुइ वि एय समणस | भवराइय सासुव दीहाउस ||६|| इह महि एउ रज ऍड पहणु। ऐंड धरू हु अवरु वि वन्धव-जणु 1७॥ इय पुण्णिम-ससि-सरियह-छत्सइँ । कह सम्बइ मि मसि परिचसई ॥८॥ सुरषरह मि असक्छु किड साहसु । बहु-कालहों वि थविउ महियले जसु।।१ एहि उखमासिय-परिवायहाँ। होन्तु मणोरह पय-सड़वायहीं' ॥१||
घत्ता
लगषणु चिन्तवई 'हउँ विणु जाणाएँ
सीया-गुण-गण-मण-रजिउ ।। हुउ अनु जणेरि-पिवजित' 11॥