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पंचालीमो संधि प्रवेश कर रहे हैं। तरह-तरह के रसोंसे निरन्तर सम्पूर्ण रहनेवाली नागरिकाएँ आपसमें कह रही थीं-"क्या यह षही राम हैं जिन्हें अपने भुजबलका ही एक मात्र सहारा है, यह तो प्रीष्म ऋतुकी भौति शीत (सीता) से शून्य है। महासत्त्वशाली होकर भी यही प्रकार शो नही ते नि मगर स्या जैनधर्म । जैसे ज्योत्स्नासे रहित चन्द्र शोभा नहीं पाता या कान्तिसे रहित सूर्य । यही हैं वे जिन्होंने रावणका वध किया । यह लक्ष्मण तो लाखों लक्षणोंसे युक्त हैं। क्या ये दोनों लवण और अंकुश हैं, जो सीतादेवीके पुत्र हैं, अंकुश विहीन गजकी भाँति । तेजमें जो सूर्य हैं। बड़े-बड़े युद्धोंके विजेता लक्ष्मण और राम भी जिनसे पराजित हुए। रामका साला यह वहीं वनजंध है जो पुण्डरीक नगरका पालक है। यही है वह शत्रुघ्न, शत्रुओंका हनन करनेवाला जो युद्ध में अजेय है। सुप्रभा का यह बेटा है जिसने मथुराधिप मधुको मार डाला ॥१-१०॥
[१०] यह वह जनकपुत्र भामण्डल है, जो विजयलक्ष्मीका निवास है, रयनूपुर नगरका स्वामी है और जो त्रिलोकमें प्रसिद्ध है । यह यह स्वाभिमानी सुग्रीव है जो वानरविद्याधरोंका प्रमुख है। किष्किन्धाका अधिपति, बालिका भाई, ताराका स्वामी यह चन्द्रमाकी भाँति शोभित हो रहा है। अभयका विनाश करनेवाला यह हनुमान है जिसने रावणके सिरपर अपना पैर जमा दिया था। यह सुविदग्धा देवीका स्वामी है, लंकाका राजा, विनयशील राजा विभीषण | यह वह नल है. जिसने हस्तको मारा था, यह है नील जिसने प्रहस्तका काम तमाम किया। स्थूल बाहुबाला यह वह अंगद है जिसने मन्दोदरी देषीके बाल पकड़ लिये थे। यह वह सुभटोंमें महान् पवनंजय