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पामचरित
जाणा-रस-सम्पुषण-निरन्तरु। जायरिया-पशु वा परोप्पह ॥२॥ ऐंतु लोक्लनिय-मुभ-वल बीयष्ठ। दीसा गिम्मु म निस्सीया ॥३॥ सोह ण पावा उसम-सप्तर। शिण-धम्म दया-परिचतम | गं जोहएँ आमेलिड ससहरु। गं दित्तिएँ जिनउ दिणयरु ॥५॥ पहु सो जे विणिवाइज रावणु। लक्खणु सक्सण-सक्वविय-तणु ।।६।। इस वेणि वि अण ते लवणकुस । सीयाणन्दण करि व गिरक कुस ॥७॥ ताणि-तेय णिबह-महाहव । जेहिं परज्जिय लावण-राहव ॥४॥ पॅहु सो वनजघु बल-सालउ । पुण्डरोप-पुरघर-परिपालउ ॥९५
ऍहु सो ससुहणु भन्दणु सुप्पह
सत्तुहणु समरे अणिवारिड । ने गा महुरारि गरि
[10] ॥ हेला || पंहु मो जगाय-पान्दगो जयसिरी-णिवासो।
रहणेसर-पुराहिदो तिहअणे पयासी ||१|| हु सो सुगीनु बराहिमाणु। पमयय-विजाहर-पहाणु ॥२॥ किहिन्ध-पाराहियु वामि-माई। तारावह तारा-वइ व माइ ॥३॥ ऍहु सो मारुइ अक्खय-विणासु । जे दिण्णु पाउ सिर रापणासु ॥३॥ ऍहु सो सुवियनाएवि-कन्तु । लसु विहीसणु विणय-धन्तु ॥५॥ पहु सो णलु घाइट जेण हरधु । पंहु पीलु विवाइड जें पहरथु ॥३॥ ऐं सो गाउ थिर-योर-बाहु में किउ मन्दोयरि-केस-गाहु ॥७॥ एंड सी पवाउ सुहर-गवर । परिपाका जो भाइच-गयरु ।।८॥