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पंचासीमो सोधि सोती थी, वही सीता अब क्न जन्तुओंके शब्दोंसे भयंकर, घास, काँटो और कुशोंसे व्याप्त बियावान जंगलोंमें गुणालंकृत होकर कैसे निडरतासे रात बितायेगी। प्रिय वाणी बोलनेवाली, अनुकूल सुन्दर महासती और सुखको प्रसन्न कारोबाकी रही स्त्री कहाँ मिल सकती है ॥१-११||
[८] धिक्कार है मुझे कि जो मैंने लोगोंके कहने से इसके साथ बुरा बर्ताव किया । अकारण मैंने अपनी प्रियपत्नीको वनमें निर्वासित किया ।" अपने मन में यह विचार कर श्रीरामने सीतादेवीका अभिनन्दन किया मानो देवोंने जिनेन्द्र प्रतिमाकी वन्दना की हो । रामकी ही भाँति सुमित्राके पुत्र लक्ष्मण और दूसरे-दूसरे विद्याधरोंके समूहने सीता देवीकी वन्दना की।" उन्होंने कहा, "सचमुच तुम सफल हो जिसने प्रसिद्ध जिनवचनामृतकी उपलब्धि कर ली और जो तुम आबाल वृद्ध वनिता सभोके द्वारा बन्दनीय हो। तुमने पति और पिताके कुलोको, अपने आपको और तीनों लोकोंको आलोकित कर दिया।" इस प्रकार उसे शल्यहीन बनाकर और वन्दनाकर महाबली राम एवं लक्ष्मण वहाँसे चले गये। कुमार लत्रण
और अंकुश ऐसे कान्तिहीन हो उठे मानो सूर्य और चन्द्रका तेज फीका पड़ गया हो। नरवर श्रेष्ठ विद्याधर जो कि मुन्दर मुकुट कटक और कुण्डल धारण किये हुए थे, चले गये । लाखों मनुष्योंसे घिरे हुए दशरथ राजाके पुत्र राम और लक्ष्मणने इन और उपेन्द्रकी भाँति, अयोध्या नगरी में प्रवेश किया ॥१-१०॥
[९] यहाँ भी अयोध्याके नागरिकोंने देखा कि प्रथम सीर्थंकर ऋषभनाथके प्रथम पुत्र भरतके समान राम नगरमें