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________________ एउमवरित सा वणयर-सद-मयाउलएँ। बहु हीर-खुण्ट-कुस-सङ्ककएँ ॥१॥ वर-काणणे पगुण गुणन्मयि। कि रणि गमसइ मय-रहिय ॥१०॥ घत्ता जम्पिय-पिय-दयण सुह-उप्पायणिय अणुकूल मणोज महालह । कहिँ लक्ष्मइ एरिस लियमइ ।।१।। [८] धि मई कियउ असुन्दरं जगहुँ कारणेणे । जंघल्लावियासि पिय पणें अकारणेणं ॥३॥ चिन्ते वि एव सोय अहिप्पन्दिय । णं जिण-पदिम सुरिन्दें वन्दिय ॥२॥ जिह ते तेम सुमित्तिहें जाएं। तिह पर विजाहर-सधाएं ॥३॥ 'तु स-कियरध जा. सुपसिद्धङ । जिगवर-बयणामिउ उपलबुट॥| जा वन्दणिय जाय गासे सहुँ। वाल-जुषाण-जरकियवसहुँ ॥५॥ कन्स-जणेर-कुल अप्पर जणु। पई उमालिंजसपालु वि तिहुयणु ॥६॥ पुणु णीसल करोव महबल। जाणइ अहिणन्दे धिगय हरि-वल ।।७॥ लवणकस कुमार विच्छाया । रबि-ससहर गिप्पह जाया || गय पर-परवरिन्द-विजाहर। सुन्दर-कश्य-माउर-कुरक-घरमा|| पत्ता दसा-राय-सुय णस्वर-लक्खेंहि परियरिय । इन्द-परिन्द जिह तिह उजमाउनी पइसरिय ॥१७॥ [२] ॥ हेला ॥ एस्धन्तरे पिएवि वलएर पसरतो। रिसह-जिणिन्द पठम-णदणहाँ अणुहरन्तो ॥१॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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