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२४॥
पडमचरित
तहम? दुक्कर जीविज छुटइ। बहु-दुक्खेंहि महु हियवर फु' ।।२।। ते कजे ॥ वि पारिड थकमि। खड़-गइ-काणणे ममें विण सकमि ॥३॥ तं णिमुणे वि वस्तु दुम्भपा-वयणउ । बोलई अंसु-जलोल्लिय-गयण ॥४॥ तुहुँ स-कियस्थव जो इट वुषि। महु-सम सिय जर-तिणमिव उधि॥५॥ धीर वीरु सब-चरणु समिठहि । इस सम्में बइ मोम्मु ण पेच्छहि ॥६॥ भवसर परियाणे सार सम्बोहा , प. देवें ॥७॥ जह जाणहि उचयार गिरत। सम्मरेज तो ऍड जं सज ॥८॥ सोविसरवसुस-विणउ पणवेप्पिणु। 'एम करेमि देव' पभणेपिणु ॥९॥
वादवि मुणि-पपर खने कियस्तषषण
घचा 'दिक्ख पसाउ' पमणम्तड । पहु-णरहि समउ मिक्खन्तर 1
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॥ हेला ।। सहसा हुड महरिसी भव-भव-सयाहूँ भीउ ।
सीकाहरण-भूसिड करयलुत्तरी ॥३॥ तो मुणि अहिपन्देवि भमर-सय । णिय-णिप-मवणहँ सहसत्ति गय ॥२१॥ सीरामहो वि संचालहि । सा अच्छा सीपाएपि जहि ॥१॥ दीलाइ अभिय-गण-पस्थिरिय। धुव-तार व ताराममारिय था गं समष-कृषिक विमसम्बरिण। णं सासण-देवय अवयरिय ॥५॥ पेल्लेंवि पुणु पिड भासण्णु बलु । णं सरप-जलप-मारूहें अचलु ॥ चिन्तन्तु परिट्रिट पछु ल । दर-बाह-मस्मि-भषिचन-जपणु ॥७॥ 'जा चिमण-वहाँ वितसह मणे । सोवह हिय-इच्छिप-वर-सपरें ।।।।