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पंचासीमो संधि
१३९ [३] सीताके कारण जो लक्ष्मग और रावणमें विरोध उठ खड़ा हुआ था, उसका सम्बन्ध उनके पूर्वजन्म के वैरसे है। लोगोंको यह ज्ञात हो गया और भी उन्होंने रावण, विभीषण, जानकी, राम, सुग्रीव, बालि और भामण्डलके सीमाहीन, दुःखमय जन्मान्तर सुने | उन्हें मुनकर कुछ तो आशंकासे भर गये और कुछ डर गये। कितनोंने अपने मनसे ईाको निकाल दिया! कई चिन्ताले सदमें डून ये, नितने ही जहाखी हुए, कईको महान् बोध प्राप्त हुआ । कितनोंने ही, समस्त परिग्रह छोड़कर, अविलम्ब संन्यास ले लिया और दूसरे कितनोंने ही प्रत धारण कर लिये और इस प्रकार उन्होंने अपने सम्यक्त्वको सहारा दिया। उसके अनन्तर मुनियोंके सम्मुख अपना सिर झुका देनेवाले मनुष्यों, विद्याधरों और देवताओंने समस्त जीवोंको अभय देनेवाले विभीषणको साधुवाद दिया। उन्होंने कहा, "हे गुण समुद्र विभीषण, आपके विनयशील स्वभावके कारण ही इम मुनियों के प्रसादसे यह चरित सुन सके" ॥१-१०॥
[४] इसी अन्तरालमें त्रिलोक में अग्रणीनाम रामसे आकर कृतान्तवक्त्रने वेगपूर्वक कहा, "पहाड़ों सहित घरतीके पालन करनेवाले हे स्वामी श्रेष्ठ, मैं आपके प्रसादसे अच्छी प्रजापाले गाँवों, और नगरोंमें नियुक्त होता रहा हूँ। मैंने समुद्र और समस्त देशोंका भोग किया है। देववनिताओंके समान रूपधनवाली महान् पीन स्तनोंवाली सुन्दरियोंका उपभोग किया है, बड़े बड़े अश्वों गजों और रथोंपर मैंने सवारी की है। बड़े-बड़े जन-मनोंके लिए सुन्दर देव विमानोंके समान महाप्रासादोंमें रहा हूँ। मैंने दिव्य सुन्दर वस्त्र पहने हैं, इच्छानुसार अपने अंगोंका प्रसाधन किया है। मैंने अनुपम नृत्य देखे हैं। तरहतरहके गान और वाद्य मैंने सुने हैं। इस प्रकार इस लोकके