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पउमरिड
[ ] ॥हेला॥ जाणेवि पुव-वर-सम्बन्धु विहि मि ताह ।
सीय कारणेण सोमित्ति-रावणाह 119॥ अणु वि बहु-दुक्ख-णिरन्तराई । अ-पमाण, सुर्णेवि मवडराई ॥२॥ दहमुह-मायर-जाणइ-बलाह। सुग्गीष-वालि-भामण्डलाह ॥३॥ के वि भासकिय गय भयहाँ के वि । के वि थिय णिय-मणे मारु मुपवित के वि थिय चिन्ता-सायरें बिसेवि । के वि हुब महन्दुस्ल विउद के वि॥५ कवि सयलु परिग्गड परिहरेवि । अस्थाएं-थिय पावन लेवि ॥६॥ अपणक के वि थिय पर धरदि। सम्मत-महरुमा खन्धु देवि ॥७॥ भूगोयर-खयर-सुरासुरे । सयल हि म मुणिहि गारमेय-सिरहिट णासेस-जीव-मम्भीसणासु । कि लाहुकार विहीसणास्तु ॥२॥
'मो मो गुण-उबहि आम्हे हि ऍउ चरिट
घत्ता पर होन्हें विष्णय-सहावें। आयणि मुणिहि पसाएं' ॥१०॥
[ ] आहेला!" तो एघन्तरे सिलोयग-पत्त-प्पामो ।
वृत्त कियन्तवणं सरसेण रामो ॥३॥ 'परमेसर सघर-धरिति-पाल। भई तुज्य पसाएं सामिसाल ॥३॥ सुपषाम-गाम-पट्टण-शिउत्त। श्यणापर देस अगेर भुत्त ॥311 माणियउ पषर-पोवर-धणा। सुरषहु-रुवोहामिय-धणाउ || अच्छिउ विउलेहि जण-मगहरेहि । मिम्बाण-विमाणे हिं वर-घरेहि ॥५॥ आरूतु तुरय-गय-रहबरेहि। कीलिड वण-सरि-सर-यहरो ॥१॥ देवगई वरथई परिहिमाई। इच्ऍ अगार पलाहियाइँ ॥ णिस्वम-गचियई पलोड्याईं। बहु-भय-गैय-धज्नई सुमाई 14