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पउमरित
एकहि दिणे ममणाय-मइन्दहों। अण्ण-दाणु सिरितिक्रय मुणिन्दहाँ ॥६ विहि मिजणेहि तेहि गुरुएन्तिए (?)। दिग्गु समुज्जक-अविचल मत्तिएँ ।" वह काल अवसाणु पनामा || नहि मि निरिण पल्लई गिवपिशु । मणे चिन्तविय भोग भुप्पिणु ।।९।। पुणु ईमाण-सम्गं हुअ सुरवर । परम-समुग्गय णं रवि-मपहर ।। १०॥
विहि स्यगायरें हि चत्रण करेंवि पुणु
उत्ता महकन्ते हि सम्मय-भरिया । सहें कायम्दिहें भवपरिया ।।११।।
[२] 1 लावद्ध गरिन्हो पर-परायणासु ।
मसि-जिम्मल-जसामु सिंघ-सोकाव-भायणासु ॥1॥ माय वे वि जिणचर-पय-सेविह। पन्दण सुअरिसणा-महाविहें ॥२॥ तहि पहिलारउ सामु पियङ्कर। नणु तणुभउ पुगु अणुउ हिय करु ॥३॥ मोहद दित्तिएँ णाई दिणेसर। णाई माह-पष्टु-बाहुबलीसर ॥४॥ घहु-काले तत्र-घरणु लएप्पिणु। सणासेश सरीरु मुएप्पिणु ॥५|| हुब गजज-शिवासिय सुरवर । स-मउवादिग्व काय-कुण्डल-धा ॥६॥ दुइ-स्या -सरीर-उन्नहिया। अणिमाहिं गुणेहि सई सहिया ।।७।। सूरप्पहें विमाणे विस्थिगणाएँ। जाविह-मणि-गहि वगएँ ॥८॥ नति इच्छियइँ सुहई माणेप्पिण | सायरा, चउबोस गमप्पिगु ॥९॥ चवि जाय पुणु भरि करि-अछुस । सीयहें पन्द्रण इइ लवणकुम' ॥ १०॥
घत्ता तं तेहउ चयणु गिसुणेप्पिणु परम-मुणिन्दहौं । हुर विम्मा गरुड विजाहर-सुरवर-विन्दही ।। ११॥