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पंचासीमो संधि तुलना किससे की जा सकती है। आठ दुष्ट काँका संहार करनेवाले उन महामुनिको केवलज्ञान उत्पन्न हो गया है। इस प्रकार ध्यानपूर्वक वह उत्तम सिद्धक्षेत्र नगरके लिए कूच कर गये है ।।१-२।।
इस प्रकार स्वयंभूदेवसे किसी प्रकार अचे हुए, पाचरितके शेषमाममें त्रिभुवन स्वयंभू-द्वारा रचित रामक और उनके परिवारके पूर्व
___भवोका कथन शीर्षक पर्व समाठ हुआ। धन्दइके आश्रित, स्वयंभू पुत्र द्वारा रचित, पण्डितोंके मनको
अच्छा लगनेवाला यह चौरासीवाँ सगं समास हुआ।
पचासीवीं सन्धि फिर भी विभीषण ने पूछा, "हे आदरणीय, कृपया कामदेवको भी विकार उत्पन्न करनेवाले सीतादेवीके दोनों पुत्रों के जन्मान्तरोंको बताइए।"
[१] यह शब्द सुनकर जगरूपी भवनके आभूषण सफलभूषण मुनियरने कहना प्रारम्भ किया। उन्होंने कहा, “सुनो, बताता हूँ । जगमें प्रसिद्ध और देवताओंको सन्तुष्ट करनेवाले महान् नगर काकंदीपुरमें वामदेव नामका एक प्रसिद्ध ब्राह्मण था । उसकी सहायिका उसकी पत्नी श्यामली थी। उससे उसे वसुदेव और सुदेव नामक दो विलक्षण पुत्र थे। उनकी अत्यन्त निर्मल चित्तकी दो पत्नियों थीं। उनकी आँखें खिले हुए कमलाके समान थीं। उनके नाम थे-विषया और प्रियंगु । एक दिन उन