SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३४ उप्पण्णाणु सो मुणिषरु झावि सत्यम्भु भार पउमचरिउ वशी इस परमचरिय सेसे तिहुयण-सयम्भु-रइए इथ रामएव चरिए कुहयण मणु- सुह-जणणो पुणु वि चिह्नीसण सीवान्दण अट्ट दुट्ट क्रम्मारिख । सिद्धि - खेस वर जयरु गज ॥१२॥ [ ८५. पंचासमो संधि ] सयम्भुवस्स कहनि उच्चरिए । सपरियण-हलीस भवद्दणं ॥ बन्दइ- आसिय सयम्भु सुभ-रइए । चउरासीमा इमो लग्यो || || हेला || संणिसुचि चयणु युवा मुणिवरिन्द्रेण 'सुणि अक्लमि परिओसिय-सुरवरें। वाम एव विष्पों शिक्षा यहाँ । सुप वसुएव सुव वियखण । वाहँ पियर दुइ फिम्मक चित्राह । I पुटिन 'मयण-वियास । कहि जम्मन्तरहूँ मडारा || [9] जग भवण भूसणेणं । सयल भूसणेणं ॥१॥ जर्गे पसिड़े कायन्दी - पुरखरें ॥२॥ सामलीऍ परिणीऍ सहायहाँ ॥ ३ ॥ वियसिय विमल:- जमल-कमले पण ४ विसय-पिय-शाम-संजुतड ॥५॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy