SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पउमचरित ससहर-मण्णिहण जस-वन्त। तणु-तमोहामिय-रइकन्ते ॥४॥ दुलह-नव-णिहाणु उवलदउ । जाणाबिह-लद्धीहि समिद्धउ ॥५॥ वहु-संवच्छर-सहमें हिं विगणे हि । दुद्धर-विसय-महारिहिं णिहएँ हि ॥१॥ माऊरिड सुल्झाणु पहाण उ । फिर इपरजाइ केवल 3 11 211 ता अक्माण कालु तहों आइ। पुशु सम्वत्य-सिद्धि संपाइउ ॥८॥ एक्काणि-नाणु माझ जाव: हाशि : १|| नहि तीस जरहि परिमाणहै। भुजयि संकिग्नई भमिय-समाग ० घत्ता मो अमा चप्पिणु पस्यहाँ जाउ बालि इह खबर-पछु । बलिय पयानु सुह-दसणु घरम-सरीरु समरे भइ-सहु (?)" [२५] जो णिग्गन्धु मुवि सामणहो । जवि जयकार कर जग अग्णहाँ ।।३।। जो मिवियन्तर पिहिमि कमप्पिणु । एइ सयल जिग हरई णवेपिपणु ॥२।। अंण ममरें महुँ पुप्फ-विमाणे । भण्गु चन्दहासेण किवाणं ॥३।। दाहिण-भुण्ण भुवण-मन्त चणु । हेलाएँ में उच्चाइ उ रावणु ||४|| पच्छ धुव ससिकिरण मए पिणु । राय-लांछ उगीयहाँ देफ्पिण ||५|| लक्ष्य दिक्क भत्र-गहण-विरते। गिरि-कइलासु चदि पयः ।।६॥ दिण्णु सिलोर परमतावणु। गहें जम्तउ रोसाधित राबणु ||७|| पुणु वि महाफर मगु खणन्तरें । को उबमिजद तहाँ भुषणन्तों ॥८॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy