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चउरासीमो संधि "आप लोग अपने मन में किसी प्रकारकी शंका न करें, जो कुछ भी मैंने कहा है, वह सब झूठ है, आज ही मेरा सब पाप फलित हो गया है" | उस दुष्टमति वेदवतीने पूर्व जन्ममै जो भाई-बहनकी निन्दा की थी, उसीका यह फल है कि जानकीक बारेमें इस जन्ममें लोगकि बीच यह अपवाद फैला ॥१-२॥
[२३] तब विमलवुद्धि विभीषणने पूछा, "हे महामुनि, कृपया बालिके जन्मान्तरोंको बतलाइए।" इसपर, गम्भीरवाणी महामुनिने बताना प्रारम्भ किया, "महान विन्दारण्यमें अपांग होकर एक हिरन विचरण कर रहा था, वह मुनिसे कुछ सुनकर मर गया। मरकर वह ऐरावत क्षेत्रके स्वर्ण और धनधान्य. से भरपूर दीप्तिनगर में उत्पन्न हुआ। एक प्रसिद्ध नाम श्रावककी पत्नी शिवमतीके गभंसे महदत्त नामका पुत्र हुआ। वहाँ उसने पाँच अगुतो, तीन गुणत्रतों और शिक्षात्रतोंका परिपालन किया । जिनवरकी पूजा और अभिषेक किया। बहुत समयके अनन्तर संन्यास विधिसे मरकर ईशान स्वर्गमें उत्समदेव उत्पन्न हुआ। दो सागर पर्यन्त रहकर यहाँसे च्युत हुआ। पूर्व विदेह के मध्य विजयावती नगर के निकट मत्तकोकिलविपुल गाँव था जो चक्रवाक की तरह अत्यन्त स्वच्छ था ! उसमें कन्तशोक नाम का एक राजा था। उसकी इसकी तरह चालवाली रत्नावती नामकी सुन्दर पत्नी थी। उन दोनोंके यह सुप्रभ नाम का पुत्र हुआ जो अत्यन्त विमलमति था ॥११॥ - [२४] जब वह यौवन-अवस्थामें पहुँचा तो उसके मनमें जैनधर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई। उसने सम्यक्त्वका भार अपने ऊपर ले लिया। प्रतिदिन तीनों समय वह जिन-भगवान्की वन्दना करता था। कन्तशोक और रत्नावतीका वह पुत्र अनुपम गुणसमूहसे युक्त था, यशमें चन्द्रमाके समान