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पउमचरित
ता वि २४ वुन "अहाँ लोयहाँ । णिय मण मा सम्लेहहीं होयहाँ ।।७! जं मई कहिउ सम्वु त अलियउ । अज्जु वि पाउ असेसु वि फलिय" 10
वत्ता
जं माइ-जुअलु तं णिन्दियउ पुग्ध-भवन्तर खल-माएँ। संचाउ एन्य उवद्बर जगहों मजा ते जाणाह' ॥९॥
पहिभणइ यिहीस विमल-मद। 'कहि वालि-मवन्तर पाम-जइ' ।।१।। सा कहइ भडारड गहिर-गिरु। 'विन्दारपण-स्थलं विउले चिरु ॥२॥ हीयङ्गु भमन्तु वि एक्कु मऊ। सो रिसि-सजमाउ सुणेवि मउ ॥३॥॥ पुणु जाउ कणय-धण-कण-पउरें। अङ्गरावर खेर्ने वित्ति-गयरें ।।४।। सावयहाँ बिहिय-णामहाँ सु-भुउ । सिवमहदे गम्महदस सुड ॥५॥ नहि पावि पवाणुस्वयहूँ। तिणि गुणग्यय (चउ)सिक्खादगई । जिणवर-पुजा हवणड करेंवि। बहु-कालें सगासैंण मरेंवि ॥७॥ ईसाग-सरगें वर-देनु हु। विहि स्पणायहिं गए हि खुड ॥४॥ यह पुग्व-विदेहम्भन्तरऐं। विजयावा-पुरै णियस्तरम् ॥५॥ णामेण मत्तकोइलविउल्छ । घर-पामु रहति व धण-बहुल ॥१०॥
वत्ता तहि कन्तसोड घर-राणउ रमणाबइ पिय हंस गई । सहुँ वीहि मि सुप्पहु गामण गन्दणु जाउ (1) विमल-मइ ॥१६
[४] तेण जुवाण-भाउ पावन्ते । णिय-मणे जहण-धम्मु भावन्तं ॥३॥ सम्मलोस्-भारु पवहन्ते । दिणे दिणे जिणुति-काल पर्णवम् ॥२ णिरु पिस्वम-गुण-गण-संजु । कम्तसोय-स्यणापा-पुतें ॥३।।