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________________ दलकर रह - करि गियरु रडिउ । युद्ध-धवल हूँ गयणाणदिराएँ । कवि पाहि सुक्कु अणाहवो त्रि 'हु णासहुँत्र मयरहरु हर-कार जे पाणहरु पउमचरिउ लङ्कहें पायारु दढति पदि ॥७॥ पढिया हूँ असेस हूँ मन्दिराएँ ||८|| । गरु कायरु का मिकहहको जि॥ ॥ एत्थ वसन्तहँ नाहि घर । जहाँ भाइयराम सर || १० | [20] तावदसाणण अपसारी हि बाणेंहिं चं छं । दसरहणन्दण से छिन हँ थिय पडिए पवि ॥१॥ रामादिमं ॥२॥ सी हसिड मे | उच्छसि पाण कवारिथामेण || ३ || ओसरु पराग ॥श्रा 'अणुवेय-परिहीण । जाहिं आवासु | धणु-लक्षणं बुभु पुण जि पयावेण । संतात्रिया देव | अह असार । विचखम्ति सता हूँ । तो मिसियरिन्द्रेण । जम-क्षण पेण । सहसयर धरणेण । सुर-मवण- भीसेण । कोन रिंग-दितेण । तम- पुअ - देहेण । भू-मङ्गुरच्छेण । अण्णम गुरु पासु दिवसेहिं पुणु जुज् ॥६॥ दुष्णय सहावेण ॥७॥ काराविया सेवा र चोर - आराई ||९॥ ण वहन्ति गप्ताहूँ ।। १० । निजिय- सुरिन्द्रेण ॥ ११ ॥ कइलास कम्पेण ||१२|| वर वरुण श्ररणेण ॥१३॥ बीस - सीसेण ॥१४॥ हक्क-वित्तेण ॥ ५॥ णं पलय- मेहेण ॥१६॥ मण-पण दुरण ||१७||
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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