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________________ . पंच सास्नी मांध [८] वे दोनों ही जानकी रूपी आगको ज्वालमालासे जल रहे थे । राम और रावण दोनों ही क्रुद्ध और मदान्ध गजकी भाँति बलसे उद्धत थे। तब युद्धभार उठानेमें अत्यन्त निपुण रावणने अपना धनुष चढ़ाया। वह ऐसा लगा, मानो प्रलयमहामेघ गरजा हो, या मानो यममुखने घोर गर्जना की हो, या आकारातल स्वयं आ गिरा हो, या रसातलने विरूप शब्द किया हो, मानो महीतलपर वन गिर पड़ा हो। उससे रामकी सेनामें हड़कम्प मच गया। मतवाले महागजोंका मद गलित हो गया, रथ टूट गये और अश्वोंकी लगामें टूट गयी । सब राजाओंमें हलचल मच गयी। सबके सत्र निस्पन्द; अस्त्रविहीन और गलितमान हो उठे। ध्वज और छत्रोंसे कड़कड़ ध्वनि सुनाई देने लगी 1 कायर वानर भयके मारे थर्रा उठे । आपस में वे कह रहे थे कि अब काम बिगड़ गया, लो अब तो विनाशका समय आ पहुँचा । एक ओर दुर्गम समुद्र था, और दूसरी ओर दारुण रावण था, अब किसके लिए कैसे जीवित रहें, परिजन घर और स्वजन कोई भी दिखाई नहीं दे रहे हैं ॥१-१०॥ [९] तब, वटवृक्षके प्ररोहोंके समान दीर्घ बाहुदण्डवाले और मायावी-सुमीवके प्राणोंका हरण करने वाले सूर्य के समान प्रचण्ड रामने अपना वावर्त धनुष बढ़ाया। उसके शब्दसे ऐसा कौन था, जिसका गर्ष न गया हो। उस शब्दने समूचे आकाशको बहरा बना दिया, संसार ऐसा लगा मानो मरणाय शेष बचा हो, उस शब्दसे नागकुल पीडित हो उठा। किसी प्रकार कछुएकी पीठ नहीं फूदी। समुद्र तक रिसकर चूने लगा। सूर्य और चन्द्रमा तक काँप गये। कुलपर्वत और दिग्गज डोल
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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