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________________ परासीमो संधि [१९] इस प्रकारके संकल्पसे उसने अपना मन दूषित कर लिया और परमसमाधिसे 'उसका सदान्त हो गया ! स्वर्गमें वह सनत्कुमार नामका देव हुआ। वहाँ सात सागर तक सुखका भोगकर वहाँसे च्युत होकर फिर जय श्रीका अभिमानी वह कैकशी और रत्नावका पुत्र रावण हुआ। उसने अपने यशसे तीनों लोकोंको भूषित कर दिया है, और विषधर नर और देवताओंको थर्रा दिया है। उसने तोयदवाहन के वंशका उद्धार किया है, सहस्रनयनके बन्दी बनाये जानेमें प्रमुख कारण वही है, और जो स्वयंभू श्रीभूति नामका पुरोहित था, वह सौधर्म स्वर्गमें जाकर उत्पन्न हुआ। वहाँसे आकर उसने प्रतिधापुरमें जन्म लिया, फिर पुनर्वसु नामका विद्याघर बना। वहाँसे आकर तीसरे स्वर्गमें देव उत्पन्न हुआ। यहाँ सात सागर पर्यन्त सुखोपभोग करता रहा। वही सुमित्रादेवीके गर्भसे राजा दशरथका पुत्र हुआ। लक्षणोंवाला सुन्दर लक्ष्मण है, जो रामका छोटा भाई और चक्रवर्ती है ॥१-२|| [२०] और जो गुणवतीका महान् गुणोंसे युक्त, गुणवान छोटा भाई है, सुन्दर मुखवाला छोटा भाई था। वहीं भामण्डलके रूप में उत्पन्न हुआ। जो गुणालंकृत यज्ञबलि था, वही तुम विभीषण हो, पूर्वभवके स्नेहके कारण ये सब रामसे असाधारण प्रेम रखते हैं। जो गुणवती नामकी बनिया की वेदी है, वह घूम-फिर कर द्विजघरमें उत्पन्न हुई श्रीभूतिकी रूपसम्पन्न पुत्रीके रूपमें । फिर ब्रह्मस्वर्ग में तेरह पल्य रहनेके अनन्तर जय गुण्य समूह बहुत थोड़ा रहा तो वहीं यह जनकनन्दिनी सीता देवी है,मानो जैसा मीठा बोलनेवाली कोयल हो। वेदवतीके स्नेह सम्बन्धके कारण, कामान्ध होकर रावणने इसका अपहरण किया। और जो इसे इतना अधिक दुःख उठाना पड़ा
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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