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पडमचरित
[१९] इय णियाण-दूसिय-सब-बियर : परम-साहि सरपr:॥ सगे लणकुमारे उपजे वि। तहि सायर सत्त सुहु भुष्में चि ॥९॥ चबिजाउ सुर जय-सिरि-माप्पणु । कइकसि-स्यगासनहुँ दसाणणु ॥३॥ जिय-जल-भूसण-भूसिय-सिहुमणु। कम्पाविय-विसहर-गर-सुरयणु ॥४॥ तोयदवाहण-वंसुद्धारणु । सहसण्यण-विणिवन्धण-कारणु ॥५॥ जो सम्भू सिरिभू-विधाइउ । पुण सोहम्म-सग्गु सम्पाइड ॥३॥ च, चि परिद्वापुरे उपजे वि। खयरु पुगवसु मधु आववि ॥५॥ तइया तियसाचा चडेपिणु। सत समुदोवमई गमेपिपशु ।।८५
सो जायउ गरमें सुमित्तिहें एउ लक्खणु लक्षणवन्दड
पत्ता दससन्दण-णरबह सुउ । वाहियु राहब-भाउ ।।९।।
[२०] जो गुणवहाँ आसि गुणपाता। भायर लहुउ पगुण-गुण-वन्तर 10 म. परिममें विचार-मुह-मण्डलु । सो उप्पण्णु एहु भामण्डलु ॥२॥ जो जपणवलि भासि गुण-भूसणु । सो तहुँ पॅहु संजाउ विडोसणु ॥३॥ ते सयल वि रामही अणुरस्ता । पुख-मवन्तर-णेह-गिडता ॥४॥ जा चिरु हुन्ती गुणवइ रजि-सुथ । भवें परिममें वि मग दियहरे हुय॥५ सिग्भूिइ सुभ रूब-रवणी। जा चिरु वम्भ-कप्पें उपाणी ॥६॥ तहि तेरह पल्लर णित्रसेप्पिणु । पुषण-पुजें थिएँ सेसे पवेपि ॥७॥ ऍह सा जाय सीय जणयहाँ सुय । णिरु महुरालाविणि णं परहुय ।।८॥ बिरु वेयवइ णेह-सम्बन्धे। हिय दसकन्धरेण कामन्| H९॥