________________
२२४
पउमचरित
वेविरशिपायम्बिर-णयणी । पमणइ दर-फुरियाइर-वयणी ।।३।। " शिसंस कप्पुरिस अ-लनिय । खल वराय दुग्गइ-गम-सणिय ॥४॥ ज पर महु जणेरु सङ्खारपि । ह परिहुत्त चला तहाँ हारेवि ॥५॥ तं सउ गसम-कम्म-संचरणही । होसमि घाहि व कारणु मरण हों" || एप भणेवि णरवाह णिल चि। कह पि कह वि जिण-भवणु पतुवि । हीनिःपा पासुनि सो जालो बहु काले पती ||८||
पत्ता
सम्भु बि सिय-सयण-विमुकउ जिणचर-वयण-परम्मुहउ । मिम्झाहिमाणु मणे भूदर बहु-दिवले हि दुग्गइहें गउ ।।९।।
[१८]
सहि महन्स-दुक्ख पावेप्पिणु । तिरिय-गइ वि शीसेस ममप्पिणु ।।१।। पुणु सावित्ति-गब्में पय-मुहु । जाउ कुसन्डय-विष्पही तणुरुहु ॥२॥ णामु पहासकुन्दु सुपसिद्धर। दुल्कह-वीहि-रयण-सुसमिन्द्रउ ।३।। दिक्खङ्कित पर-णाण-सणाहहों। पार्से विचित्तसेण-मुणिणारहों ।।४।। तबु करन्तु परमागम-जुत्तिएँ। एक-दिषसे गउ बम्दणहत्ति ||५|| सम्मेहरिह परायर जाहि। कणयप्पहु विजाहरु ताहि ।।५।। गयणगणे लक्विनइ जन्त। जो सुरवहहें चि सिय महन्त ।।। हे णिएवि परिचिन्तित साहुहूँ। मयस्के उ-अथलम्छण-राहुहुँ ।।४।। "होउ तात्र महु सासय-सोक्खें। विहव-विवजिपण ते मोपखें ॥९।।
पत्ता सहदों जिणागम-कहियहाँ अस्थि कि पि जइ तवहीं फलु । तो एहउ अण्ण-मवन्तरे होउ पहुसणु महु सप" ।।१०