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चउरासीमो संधि
२२३ हजारों योनियों में भटककर शत्रुविजेता राजा वैकुण्ठ और हेमन्नतोके यहाँ गालकुण्ड गारमें उत्पन्न हुआ। उसका स्वयंभू नामका नयनानन्दन पुत्र था, जो देवताओंके लिए भी अजेय था। और वसुदत्त भी क्रमसे असंख्य लाखों जन्मान्तरों में भटकता रहा। वहीं पर अपने यशसे दुनियामें उजाला करनेवाले स्वयंभू राजा के यहाँ श्रीभूति नामका पुरोहित प्रधान हुआ । उसकी पत्नीका नाम सरस्वती था || १-११॥
[१६] अनेक भवों में भटकती हुई गंगाके किनारे हथिनी बनी । एक दिन वह कीचड़में खप गयी। उसके नेत्र मुंदने लगे, और प्राण व्याकुल हो उठे । यह देखकर तरंगजय विद्याधरने उसे उसी समय पंचनमस्कारमन्त्र दिया। वह फिर श्रीभूति के यहाँ कन्या उत्पन्न हुई। उसका नाम था वेदवती, और उसका मुख पूर्णन्दु के समान सुन्दर था। ऐसी लगती थी जैसे प्रच्छन्न रूपसे कोई देवी हो। तब राजा स्वयंभूने अनुराग उत्पन्न करनेवाली यह लड़की मांगी। इसपर श्रीभूतिने कहा, "अपनी सोने सी बेटी मिथ्याष्टिको कैसे दे दूँ ?" यह सुनकर राजा क्रुद्ध हो उठा । उसने पुरोहितका काम तमाम कर दिया । परन्तु जिनधर्मके प्रभावसे वह स्वर्गमें उत्पन्न हुआ | उसकी बालसूर्य के समान छवि थी, जो सुन्दर कान्तिसे युक्त था । वेदवतो राजाको बिलकुल नहीं चाहती थी, फिर भी उसने उसके शीलका खण्डन बलपूर्वक कर दिया, जो उसकी सब कुछ शोभा थी ॥१-५॥
[१७] जय राजाने उसका चरित्र खण्डित कर दिया तो पिता भयंकर कषायसे अभिभूत हो उठा | सरस्वतीकी बेटी, वेदवती सहसा आगबबूला हो गयी, मानो आगका कण पुआलको