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पयरें मुणालकुण्डे रिङ-महाँ ।
जाउ सम्भु णार्मे वर णन्दणु । वसुदत्तु वि जम्मन्तर
पउमचरेिड
हि ।
सिरिभूह - णामु तेथ्थु जॅ पुरें हु सम्भु परम पुरोहिड
तो वेबवर गरमाग वलिमण्डऍण समिच्छन्ति
जं रितु विणासि राएं । णं सरसह सुन शक्ति पतिती ।
हेमबइ वकण्ठ परिन्दों || || सुरहँ मि तुज नयगाणन्दणु ॥ ९ ॥ उत्पनन्तु क्रमेण अस हि ॥१०॥
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गुणवद्द वि क्षणेय-मवेहि आय । एकहि दिणें पङ्कुप्प खुत्त । पक्ष तरजण परेण । पुणु सिरिमूहें उप्पण्ण दुहिय। णं का वि देषि पण आय | सिरिभूह जम्पिड "कणय वण्ण तो सेण बि सुहु विरुद्ध युग | जिग-धरमे सुरवरु सगै जाउ ।
पुणु करिणि अमरसरि-तीरें जाय ॥ १ ॥ पाणावल मडलीहूअस ॥२॥ जयकार पञ्च तहि दिष्ण तेण ॥३॥ चेयवद्र णामु छण-यन्द-मुहिय ॥ ४ ॥ सामग्गिय सम्भुं जणिय-राय || ५ || किह मिच्छादिट्ठिह देमि करण" ॥ ६॥ शिविर पुरोहिउ कुएण ॥७॥ जरतारुण- छषि सच्छाय-छाउ || 2 ||
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यि जस-भुवणुज्ञालियाँ |
सरसह णार्मे भज्ञ नहीं ||११||
यत्ता
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सयलुत्तम-मण्डप
किड व सोलहों खण्डण ||२॥
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जणु विवाह गरुन कसाएं ॥१॥ अक्षम तिथि पाले व विती ॥२॥