SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૧૩ पयरें मुणालकुण्डे रिङ-महाँ । जाउ सम्भु णार्मे वर णन्दणु । वसुदत्तु वि जम्मन्तर पउमचरेिड हि । सिरिभूह - णामु तेथ्थु जॅ पुरें हु सम्भु परम पुरोहिड तो वेबवर गरमाग वलिमण्डऍण समिच्छन्ति जं रितु विणासि राएं । णं सरसह सुन शक्ति पतिती । हेमबइ वकण्ठ परिन्दों || || सुरहँ मि तुज नयगाणन्दणु ॥ ९ ॥ उत्पनन्तु क्रमेण अस हि ॥१०॥ धा [4] गुणवद्द वि क्षणेय-मवेहि आय । एकहि दिणें पङ्कुप्प खुत्त । पक्ष तरजण परेण । पुणु सिरिमूहें उप्पण्ण दुहिय। णं का वि देषि पण आय | सिरिभूह जम्पिड "कणय वण्ण तो सेण बि सुहु विरुद्ध युग | जिग-धरमे सुरवरु सगै जाउ । पुणु करिणि अमरसरि-तीरें जाय ॥ १ ॥ पाणावल मडलीहूअस ॥२॥ जयकार पञ्च तहि दिष्ण तेण ॥३॥ चेयवद्र णामु छण-यन्द-मुहिय ॥ ४ ॥ सामग्गिय सम्भुं जणिय-राय || ५ || किह मिच्छादिट्ठिह देमि करण" ॥ ६॥ शिविर पुरोहिउ कुएण ॥७॥ जरतारुण- छषि सच्छाय-छाउ || 2 || । यि जस-भुवणुज्ञालियाँ | सरसह णार्मे भज्ञ नहीं ||११|| यत्ता ज सयलुत्तम-मण्डप किड व सोलहों खण्डण ||२॥ [७] जणु विवाह गरुन कसाएं ॥१॥ अक्षम तिथि पाले व विती ॥२॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy