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________________ २२० यि पुरा ह पउमचरिउ पहु विवि तव चरणु कड्ड सिरिचन्दे सो सिरिचन्द साहु अपरिमाहु निरु णिरुवम- रयण-तय-मण्डणु VETERANETEI कन्दर पुलिशृाण-निवास | चित्तु सुह मारण मावशु । वहु-काले भषसाणु पचण्ड । सुरवर-शाहु विमाण विस्लएँ । विर-तत्र चरण- पहावें आयहाँ । हय भुषण त को उबमिव । जो विरु महन्द्रउ होतउ । आयउ । दुइ सारई से सुर सूरस्थ वेयर - णेसह । ऍडु सुग्गीकु जगत्तय पायडु | धन्ता दिहिकन्त सुन्दरमइहें । OT पासें समाहिगुत्त - जहाँ ||११|| [19] तातिसाहित्र-सिव माबि उप्पण्णु एथु ऍडु राहउ घण-मलकमुअ-भूसिय विगाहु ||१|| पश्चेन्दिय-दुद्दम-दणु-दण्णु ||२|| पार ॥२॥ राग-दोस-भय-मोह विशालणु ||४|| किय- सासण-वच्छ पहाच ||५|| गम्पणु वम्मकोऍ उणउ ॥ ६ ॥ मणि-मुसाहरू - विदुम-मालऍ ॥७॥ धत्ता । दस सायरॅहि गरहि दुसरह - रायों पम- सुउ !! [१५] विक्रम-रूप-वि-सहायहाँ ॥१॥ जासु सहल - जयणु वि गड पुज्जइ || २ || जो ईसार्णे सुरक्षणु पत्तउ ॥३॥ काले सो ताराव जायत ॥ १४ ॥ गिरि-किञ्चिन्ध-णयर-परमेसरु ॥५॥ बालि कशिद्वज वाणर-धयडु ॥ ६ ॥ सिरिकन्तु विगुरु-तुष-निवासहिं । पश्मिमन्तु बहु- जोणि सहाहिं ॥७॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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