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यि पुरा ह
पउमचरिउ
पहु
विवि
तव चरणु कड्ड सिरिचन्दे
सो सिरिचन्द साहु अपरिमाहु निरु णिरुवम- रयण-तय-मण्डणु
VETERANETEI कन्दर पुलिशृाण-निवास |
चित्तु सुह मारण मावशु । वहु-काले भषसाणु पचण्ड । सुरवर-शाहु विमाण विस्लएँ ।
विर-तत्र चरण- पहावें आयहाँ । हय भुषण त को उबमिव । जो विरु
महन्द्रउ होतउ । आयउ ।
दुइ सारई
से
सुर सूरस्थ वेयर - णेसह ।
ऍडु सुग्गीकु जगत्तय पायडु |
धन्ता
दिहिकन्त सुन्दरमइहें । OT पासें समाहिगुत्त - जहाँ ||११||
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तातिसाहित्र-सिव माबि उप्पण्णु एथु ऍडु राहउ
घण-मलकमुअ-भूसिय विगाहु ||१|| पश्चेन्दिय-दुद्दम-दणु-दण्णु ||२||
पार ॥२॥ राग-दोस-भय-मोह विशालणु ||४|| किय- सासण-वच्छ पहाच ||५|| गम्पणु वम्मकोऍ उणउ ॥ ६ ॥ मणि-मुसाहरू - विदुम-मालऍ ॥७॥
धत्ता
।
दस सायरॅहि गरहि दुसरह - रायों पम- सुउ !!
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विक्रम-रूप-वि-सहायहाँ ॥१॥
जासु सहल - जयणु वि गड पुज्जइ || २ || जो ईसार्णे सुरक्षणु पत्तउ ॥३॥ काले सो ताराव जायत ॥ १४ ॥ गिरि-किञ्चिन्ध-णयर-परमेसरु ॥५॥
बालि कशिद्वज वाणर-धयडु ॥ ६ ॥
सिरिकन्तु विगुरु-तुष-निवासहिं । पश्मिमन्तु बहु- जोणि सहाहिं ॥७॥