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________________ चटरासीमा संधि राज्य और सिंहासन स्वीकार करने में तो सापालन दास हूँ और आपके इच्छित आदेशका पालन करुंगा।" इस प्रकार संभापण कर बह' वणिग्वर उसे अपने सुन्दर राजकुलमें ले गया। वे दोनों एक आसनमें बैठे थे, मानो आकाशमें सूर्य और चन्द्र स्थित थे। उनके शरीर इन्द्र और प्रतीन्द्रके समान सुन्दर थे। एक दूसरेके प्रति उनका स्नेह बहुत बढ़ाचढ़ा हुआ था। दोनों ही जन सम्यग्दर्शनसे युक्त थे, और श्रावक व्रतोंके भारको धारण किये हुए थे। दोनोंने जिनमन्दिरोंका निर्माण किया था। ऊँचे इतने कि ऊपरके ऊँच शिखर आकाशको छू रहे थे । मणिरत्नोंसे जैसे समुद्रकी शोभा होती है, जैसे वर गुणोंसे कुलवधू शोभित होती है, जैसे सुकथा सुभाषित वचनोंसे शोभित होती है, वैसे ही उन्होंने जिनमन्दिरोंसे धरतीकी शोभाको बढ़ा दिया ॥१-२॥ [१३] उसके बाद बहुत समयके अनन्तर मल्लेखना पूर्वक मरकर वे दोनों ईशान स्वर्ग में जाकर देव हो गये। वहाँ दो सागर समय तक रहकर पद्मचि वहाँसे न्युन होकर अपरविदेहके विजयार्ध पर्वत पर सुन्दर चन्द्रावर्त नगरमें उत्पन्न हुआ। वहाँ वह नन्दीश्वर प्रभु और कनकप्रभका बेटा था । उसका नाम था-नयनानन्दन । वहाँ देवकीड़ाके समान राज्य कर फिर उसने तप किया। मर कर वह फिरसे महेन्द्र स्वर्गमें देव हुआ । उस में उसने सात सागर समय तक निवास किया। तदनन्तर भाग्यवश स्वर्ग छोड़कर मेरु पर्वतसे पूर्व क्षेमपुरी नगरी में, रानी पद्मावती और राजा विमलवाहमके गुणोंसे अधिष्ठित पुत्र हुआ । उसका मुख चन्द्रमाके समान सुन्दर था। नाम श्रीचन्द्र था, लगता था जैसे मनुष्य के रूपमें काम हो । यहुत समय तक सुन्दरतासे राज्यका सम्पादन कर, अन्तिम समय उसे परलोक
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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