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________________ ጎረ पउमचरित हउँ त दासु पय-पेणु ॥ ३ ॥ पुणु णिणिय राव जण मणहरू ॥४ । चन्दाइब गाइँ गयण ||५|| अप्पर परिवयि हा ॥ ६ ॥ इ मे रज्जु सिंहास 1 एकमाइ संभावि वणि- वह 1 विष्णि विजय निविट्ठ एक्कासणें इन्द-पदिन्द व सुन्दर-देहा । विष्णि वि जण सम्मत- णिउता । सावग्र-य-मर-धुर-संजुसा ॥७॥ विहि वि करावियाइँ जिण-भचण हुँ । उष्णय-सिहरुलविघय-गयणइँ ॥८॥ एक टिरि पनि महि सिंह सुकह सुहासिय- वयहिं सिद्ध महि भूमि जिगह हि ||५|| बहु काल सलेहाँ मरेषि । रणायराइँ तर्हि हुइ गमेषि । हुआ श्रवरविंदे जबइरि- सिहरें । जन्दीस रपहु-कणयप्पा हूँ । तहि रजु अमर लोक करेवि । माहिन्द-समिवाणु जाउ । मेरठ माटी हैं। गुफाहिगुत्त । पमा मुहयन्द-हन्दु सिरिचन्द्र- नासु | बहु काल करेमिणो रज्जु । ु घत्ता [2] ईसाण-ससुर जाय वेषि ॥ १ ॥ पउम सुरवरु पुशु वेषि ॥२॥ सु-मोहरें चन्द्रावतमय ॥३॥ सुषणाणण णामु हूँ ॥ ४ ॥ तव चरणु चरैपिणु पुणु मरेवि ||५|| सायर हूँ सह शिवसेनि आउ || ६ || यि विडिओ हामिय- सुरपुरी || गरवद्द विमलवाहनहीं पुत्तु || 4 || थिंड माणुस वेसें जाइँ का ||९|| पुणु चिन्तित मर्णे परकोय तु ॥ १०॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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