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________________ परासीमो संधि रक्षकोंने जाकर राजकुमारको सारा वृत्तान्त कह सुनाया। राजकुमार भी इष्ट मिलनकी रागवती उत्कंठासे तत्काल जिनमन्दिर पहुँचा । उसने देखा कि पद्मरुचिकी पदको देखकर पलकें नहीं झप रही हैं, और वह गहरे आश्चर्यमें पड़ा हुआ है । तब अपनी श्री और वंशका उद्धार करनेवाले राजकुमार वृषभध्वजने पूछा, "इस पटको देखकर आपके लिए इसना कोलाहल किसलिए हुआ" ॥१-९|| ___ [११] यह सुनकर बणिकपुत्रने कहा, "इस प्रदेशमें एक बैल मरा था। उसे मैंने पंच नमोकार मन्त्र दिया था जो पैंतीस अमरोंसे पूरा होता है। यह सब पुराना स्थान देखकर और उस कहानीको याद कर मैं आश्चर्यमें पड़ गया। यह सुनकर, श्रीदत्ताका पुत्र सुवीर वृषभध्वजका शरीर हर्षसे पुलकित हो उठा । 'मैं वहीं बैल हूँ' यह कहकर उसने दोनों हाथ जोड़कर शीघ्र उसे प्रणाम कियाहार, कटक और कटिसूत्रसे उसका ऐसा सत्कार किया, जैसे कोई शिष्य दुर्बुद्धिसे रहित अपने गुरुका करता है। उसने निवेदन किया, "नरक और तिर्यच गतिको रोकनेवाली पंडितोंके अभीष्ट जो सन्मति मुझे वी, वैसे न तो पिता दे सकता है, और न माता, न स्त्री, न पुत्र और न भाई, न बहन, न बच्ची, न मित्र और न अनुचर और न इन्द्रप्रमुख बड़े-बड़े देवता ही, यह दे सकते हैं। उस पोर दुरवस्था में जो आपने मुझे अनुपम समाधिरसायन दिया था, उसीका यह फल है कि जो मैं इन नगरमें राजाका पुत्र हो सका ॥१-१०॥ [१२] मुझे जो यह मनुष्य शरीर मिला, और जो यह वैभव और बड़प्पन मिला, जो यह नरसमूह मेरी स्तुति करता है, वह सब सचमुच आपके प्रसादसे। इसलिए आप यह सब
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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