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पउमचरित
सो वि इट-सझम-अणुराइड। शक्ति परम-जिण-भवाणु पराइउ ।।७।। विट्ठ तेग पहें वित्तु णियन्तउ। अचल-दिदि वर-विम्हय-वन्सड ८॥
पत्ता पुणु वसहरण पपुच्छिउ णिय-सिय-सुद्धारणेण । "एडु पछु णिएवि सड़ हुअउ कोकहलु किं कारणंण" ||९11
[१] तं गिसुवि अक्खइ वणि-तणुरुतु 1 "पत्थु पएसे एका मुउ अणहुहु ॥१॥ तहाँ णवकार पच मह दिया। जे पणतोसक्खर-सम्पुष्णा" ||२|| नं ऐंज सयलु वि गिऍवि चिराप्पड | गड विम्हयहाँ सरेवि कहाणः ॥३|| तो सिरिदत्ता-सुऍण सुधीरें। रटमा रिय-समन-सरो ॥ "सो गोवइ हउँ" एवं पवेप्पिणु । कर-मउकालि तुरिउ करेप्पिणु ||५|| हार-पय-कारसुत्तेहिं पुलिउ। गुरु व सु-सीसे कुमह-विच जिउ ॥६॥ "ण घि तं काह पियरु पप पि मायरि । ग.वि कलतु णवि पुसुण भायरिं 114 णवि सस दुहिय ग मिस ण किकर । सहसणयण-पमुह विण धि सुरवर ।।८।। जं पइँ महु सुहि-इछु समास्ति । गस्य-तिरिय गइ-गमणु-णिवारिउ ॥९
घन्ता जं विष्णु समाहि-रमायणु तेस्थ बिहुरे पर णिरुवमउ । तहों फलेंण परिन्दों गन्दशु पुणु एरथु ज पुरस्ट हउँ ॥१०॥
जं उचलबउ मई मणु अत्तगु । जं धुन्यमि-णावर सट्टाएँ ।
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अण्णु वि एहु बिहडड वक्त्तणु ।।१।। तं सयलु वि ऍड तुज्नु पसापं ॥२॥