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परासीमो संधि पड़ा। उसने देखा कि आगे धरती पर एक बूढ़ा बैल पड़ा हुआ है, जो हिमगिरिके समान धवल है, जिसकी आयु समाप्त प्राय है, और जिसके प्राण छटपटा रहे हैं ॥ १-१ ॥
[२] उस मरणासन्न चूढ़े बैलको देखकर मेरुका बेटा पंकजरुचि घोड़ेसे उतर पड़ा। उसके पास जाकर एक पलमें ही उसके कान में पंचणमोकार मन्त्र सुना दिया। उस मन्त्रके प्रभावसे उस बूढ़े बैलका जीव जिनधर्मकी भक्त श्रीदत्ताके गर्भमें जाकर पुत्र बन गया, और कान्तिमान राजा छत्रछायके वृषभध्वज नामका पुत्र हुआ। एक दिन वह राजपुत्र नन्दनबनके लिए जा रहा था। अचानक वह अपनी मरणभूमि पर पहुँच गया। उसे देखकर वह एकदम अचल हो उठा। उसे अपने सब जन्म-जन्मान्तर याद आ गये। उस दशाको देखकर उसके मन में गहरा विषाद हुआ। वह अपने अद्वितीय गजसे उतर पड़ा। वह पहचान रहा था, "अरे यहाँ मैं बैलके रूप में पड़ा थामैं यहाँ रहता था। यहाँ चरता था, यहाँ पानी पीता था, और यहाँपर अपने छटपटाते प्राण लेकर पड़ा हुआ था। उस अवसरपर जिसने जीथकल्याणकारी, पाँच नमस्कार मंत्रका जाप मेरे कान में दिया, उसे मैं किस प्रकार देख सकता हूँ, यह सोचकर वह बहुत देर तक बैठा रहा ॥ १-१०॥
[१०] फिर उसने उस जगहपर एक विशाल जिनालयका निर्माण कराया । एक पटपर अपने जन्मान्तर लिखवाये, और द्वारपर उन्हें टैंगवा दिया । अनेक योद्धाओंको वहाँ रक्षक नियुक्त करके अनेक लक्षणोंसे युक्त वह राजकुमार गजकुल लौट गया । एक दिन आदरणीय पद्मरुचि वन्दनामक्तिके लिए उस महान जिनालय में आया । जब उसने प्रसपर लिखे हुए कथान्तरोंको देखा तो वह अचरजमें पड़ गया। इसी बीच द्वारके