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चउरासीमो संधि [७] जो सदैव सूर्यको अस्त देखकर इस व्रतका आचरण करता है, वह सुन्दर देवगतिको प्राप्त करता है, और इन्द्र होकर सुखका भोग करता है। फिर वहाँसे आकर उत्तम सुख प्राप्त करता है ! मनों आठों कर्मन शाम है। जो निशाभोजनका परित्याग नहीं करता, उसे जन्म-जन्मान्तरमें अनन्त दुःख देखने पड़ते हैं। जो रानमें भोजन कर लेता है, उसने गीला मांस ( कशा) खा लिया, मदिरा पी ली, और शहद चख लिया, सनके फूल, ( सणहुल्ल ) निम्ब समृद्धि (१) और पाँच उदुम्बर तल खा लिये । उसने असत्य कथन किया, और दूमरेके धनका अपहरण किया, वह निरन्तर हिंसाका दोषी है, और यहाँ तक कि दूसरेकी स्त्रीका भी उसने अपहरण किया । अथवा बहुत कहनेसे क्या, ब्रोंकी सच्ची जड़ यही है । जिसके समीप होने पर सैकड़ों भव्य जीवों के लिए मोक्ष भी समीप हो जाता है. ।। १-२॥
[८] महामुनिके उपदेशसे धनदत्तने मिध्यात्व छोड़कर अणुव्रत ग्रहण कर लिये । अन्धकार दूर होने पर उसने वहाँसे कूच किया। बहुत समय तक धरती पर भ्रमण करने के अनन्तर समाधिपूर्वक भर कर वह सौधर्म स्वर्गमें देव रूपमें उत्पन्न हुआ। वहाँ कई सागर प्रमाण रहकर जब कुछ ही पुण्य शेष रहा तो धारणी और मेरु नामक वणिकराजके यहाँ पुत्ररूपमें जन्मा । उसका नाम पंकजरुचि (पद्मचि) था। उसका मुख भो कमलके समान था। वह उस महापुर नगर में जन्मा जो धन-धान्यसे प्रचुर था, जहाँ छत्रछाय नामक राजाका राज्य था। श्रीदत्ता उस राजाको प्रियतमा पत्नी थी । शत्रुओंके नगर और नागरिक उससे सदैव आशंकित रहते थे। एक दिन वह घोड़े पर घूमने निकला, और गोठ देखकर वापस लौट