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पडमचरित
[ ] गहें गिऍवि सका दाय अरथमिः। ओबामगार : सो पाबह मणहर देव-गइ। सुड भुभाइ होवि अमर-वह ||२|| अणु असे वि उत्तम कुलु लाइ । पुणु अट्ट वि कम्मरै णिहाइ ।।३।। णिसि-भाजण पिष्ट जेण पुशु । तहाँ भचें भर्वे दुक्ख अणन्स-गुणु ।।३।। भल्लल्ल-मंसु ते मक्षियउ। ते पिय महा महु चक्स्पियन ॥५॥ सण-हला जिम्मसमिद्धाइ। तें पञ्चम्परत मि सदा ।।। ते वयणु अप्सचउ जम्पियड। ते अण्णहाँ तणड दम्बु हिपउ॥७॥ से सुट्ट गिरन्तर हिंस किय। परणारि नि ते णिस्त लय ॥६॥
अहवइ कि बहुएं चविण जे होन्हें हाइ ममीवर।
घसा ९३ जें मूलु सनु वयह । मोक्षु वि भव-जीव-सयो" ||९|
[८] रिसि-वयणे विमुख-मिच्छत्ते । लइमई अणुक्याइँ धणदत्त ।।१।। गट तत्थहाँ वि गण तमाले। भमें घि महीयलें वह काले ।।२।। समा समाहिएँ मरणु पचपणा । पुणु सोहम्में देउ उप्पण्णड ॥३॥ तादि वे सायराई गिवसेविणु। कि पि सेसे थिएँ पुणे चवेपिपणु ॥४॥ जाउ महा-पुर बहु-धण-उत्सर। छत्तच्छाय-परेसर-मत्सर ।।५।। पहु पिययम मिरिंदत्तालतिय। पर-पुरवर-गर-णियरासदिय ॥६॥ धार्शिण-मेरु-बणीसई तणुरुहु। शामें पढ़यहद पङ्कप-मुहु ।।७॥ एकहि दिणे स-तुरनु पयहठ । गोट्ट पलोएँचि परिपछउ ॥८)